For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- हर कोई अनजान सी परछाइयों में क़ैद है

जानकर औक़ात अपनी वो हदों में क़ैद है
हर परिंदा आज अपने घोंंसलों में क़ैद है।।

जीत लेगा मौत को भी आदमी यूँ एक दिन
इस तरह की सोच सबकी हसरतों में क़ैद है।।

क्रोध लालच दम्भ नफ़रत ज़ात मजहब को लिए
हर कोई अनजान सी परछाइयों में क़ैद है।।

कब कहाँ किस को दग़ा दें रहनुमा इस देश के
झूठ मक्कारी तो उनकी आदतों में क़ैद है।।

जिस शजर की छाँव में बारात सजती थी कभी
आज वो वीरान बनके रतजगों में क़ैद है।।

टूट कर ख़ामोश जो दाने हुए तो जाना मैं
घुंघरूओं की खनखनाहट पायलों में क़ैद है।।

पूजना ही है अगर तो पूजिये माँ बाप को
बुतपरस्ती फालतू के दायरों में क़ैद है।।

वेदना और भूक की सौग़ात बचपन से लिये
मुफ़लिसी की ज़िन्दगी दुश्वारियों में क़ैद है।।

मानता हूँ मैं बहुत कुछ, मानता पर मैं नहीं
आसमाँ ये आदमी के हौसलों में क़ैद है।।

गेसुओं में आपका चहरा नज़र आता है यूँ
आसमाँ का चाँद जैसे बादलों में क़ैद है।।

 (मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 914

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dimple Sharma on June 6, 2020 at 2:34pm

वाह आदरणीय बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें

Comment by Samar kabeer on June 6, 2020 at 12:10pm

जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by नाथ सोनांचली on June 6, 2020 at 4:37am

आद0 अमीरुद्दीन अमीर जी सादर अभिवादन। आपकी ग़ज़ल पर इस्लाह का बहुत बहुत शुक्रिया। आपके बताए जग्गो पर संसोधन कर लिया है।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 5, 2020 at 11:06pm

जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी, अचछी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें। कुछ बिन्दुओं पर आपका ध्यानाकर्षण कराना चाहूँगा : हर परिंदा आज अपने घोसलों में क़ैद है। यहांँ घोसलों को घोंसलों कर लें।

क्रोध लालच दम्भ नफ़रत जात मजहब को लिए, यहांँ जात मजहब में ज के नीचे नुक़्ता लगा लें।

गैसुओं में आपका चहरा नज़र आता है यूँ, यहांँ गैसुओं को गेसुओं कर लें। 

और शेअ'र नं. 5:  जिस शजर की छाँव में बारात सजती थी कभी

                          आज वो वीरान बनके रतजगों में क़ैद है।।.         के दोनों मिसरों में भाव स्पष्ट नहीं है और रब्त भी नहीं है,

दूसरे मिसरे में विरोधाभास है। सादर। 

Comment by TEJ VEER SINGH on June 5, 2020 at 6:39pm

हार्दिक बधाई आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी।बेहतरीन गज़ल।

कब कहाँ किस को दग़ा दें रहनुमा इस देश के
झूठ मक्कारी तो उनकी आदतों में क़ैद है।।

पूजना ही है अगर तो पूजिये माँ बाप को
बुतपरस्ती फालतू के दायरों में क़ैद है।।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service