For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( जाना है एक दिन न मगर फिक्र कर अभी...)

(221 2121 1221 212)

जाना है एक दिन न मगर फिक्र कर अभी
हँस,खेल,मुस्कुरा तू क़ज़ा से न डर अभी

आयेंगे अच्छे दिन भी कभी तो हयात में
मर-मर के जी रहे हैं यहाँ क्यूँँ बशर अभी

हम वो नहीं हुज़ूर जो डर जाएँँ चोट से
हमने तो ओखली में दिया ख़ुद ही सर अभी

सच बोलने की उसको सज़ा मिल ही जाएगी 
उस पर गड़ी हुई है सभी की नज़र अभी

हँस लूँ या मुस्कुराऊँ , लगाऊँ मैं क़हक़हे
ग़लती से आ गई है ख़ुशी मेरे घर अभी

मंज़िल बुला रही है मुझे कब से दोस्तो
है मेरे  इंतिज़ार में सूनी डगर अभी

क्यों चहचहा रही हैंं परिंदों की टोलियाँ
सूरज है सर पे देख हुई दोपहर अभी

* मौलिक एवं अप्रकाशित.

Views: 1167

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on July 4, 2020 at 3:01pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

बहुत कुछ तो जनाब रवि भसीन जी बता चुके हैं,संज्ञान लें ।

'आयेगी कल वफ़ात भी तू सब्र कर अभी'

इस मिसरे में हालाँकि 'वफ़ात' का अर्थ मौत होता है,लेकिन इसके लिए 'आएगी' का प्रयोग उचित नहीं,इसके लिए 'वफ़ात पाना' ,'वफ़ात होना' जैसे शब्दों का प्रयोग उचित होता है,ऊला यूँ कर सकते हैं:-

'जाना है एक दिन तो न कर फ़िक्र तू अभी'

'हमने तो ओखली में रखा है जी सर अभी'

इस मिसरे में 'जी' शब्द भर्ती का है,इसे यूँ कर सकते हैं:-

'हमने तो ओखली में दिया ख़ुद ही सर अभी'

'सच बोलने की अब सज़ा मिल जाएगी उसे'

इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-

'सच बोलने की उसको सज़ा मिल ही जाएगी'

'हँस लूँ या मुस्कुराऊँ , लगाऊँ मैं कहकहे'--"क़हक़हे"

'मंज़िल बुला रही है मुझे कब से बारहा'

इस मिसरे में 'कब से' के साथ "बारहा" शब्द उचित नहीं, "दोस्तो" कर सकते हैं ।


'है मेरे इंतजार में सूनी डगर अभी'--"इन्तिज़ार"

पारिवारिक कारणों से कुछ समय ओबीओ पर हाज़िर नहीं हो सकूँगा,सिर्फ़ तरही मुशाइर: में शिर्कत हो सकेगी, आपको कहीं मेरी ज़रूरत महसूस हो तो फ़ोन पर सम्पर्क कर सकते हैं ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 4, 2020 at 12:23pm

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, नमस्कार। बहुत अच्छे अशआर हुए हैं जनाब, मुबारकबाद क़ुबूल करें। बस ग़ज़ल का मतला थोड़ा खटक रहा है।

/आयेगी कल वफ़ात भी तू सब्र कर अभी
हँस,खेल,मुस्कुरा तू किसी से न डर अभी/
आदरणीय, सब्र उस चीज़ के लिए करने की सलाह दी जाती है जिसे पाने के लिए हम आतुर होते हैं, उस चीज़ के लिए नहीं जिससे हम डरते हैं और नहीं चाहते कि हमें मिले। मतले के लिए एक सुझाव पेश कर रहा हूँ:
221 / 2121 / 1221 / 212
जाना है एक दिन न मगर फ़िक्र कर अभी
हँस खेल मुस्कुरा तू क़ज़ा से न डर अभी

/आयेंगे अच्छे दिन भी कभी तो हयात में
मर-मर के जी रहे हैं यहाँ पर बशर अभी/
सानी में 'पर' के स्थान पर 'क्यूँ' कह कर देखिएगा, शायद आपको ज़ियादा उचित लगे।

/हम वो नहीं हुज़ूर जो डर जाए चोट से
हमने तो ओखली में रखा है जी सर अभी/
आदरणीय, 'जाए' की बजाए 'जाएँ' कहना मुनासिब होगा।
ये अशआर देखिएगा:
अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल
हम वो नहीं कि जिनको ज़माना बना गया
(जिगर मुरादाबादी)

हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएँगे
(शेख़ इब्राहीम ज़ौक़)

वो हम नहीं जिन्हें सहना ये जब्र आ जाता
तिरी जुदाई में किस तरह सब्र आ जाता
(परवीन शाकिर)

Comment by सालिक गणवीर on July 3, 2020 at 8:40am

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ.सादर.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 2, 2020 at 8:28am

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । उत्तम गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

हँस लूँ या मुस्कुराऊँ , लगाऊँ मैं कहकहे
ग़लती से आ गई है ख़ुशी मेरे घर अभी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service