(221 2121 1221 212)
उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो
ख़ालिस की है तलब ये अदाकार कम करो
आगे जो सबसे है वो ये आदेश दे रहा
आराम से चलो सभी रफ़्तार कम करो
वो हमसे कह रहे हैं कि मसनद बड़ी बने
हम उनसे कह रहे हैं कि आकार कम करो
जो मेरे दुश्मनों को गले से लगा रहा
मुझसे कहा कि दोस्तोंं से प्यार कम करो
अपने घरों में क़ैद हैं , हर रोज़ छुट्टियाँ
किससे कहें कि अब तो ये इतवार कम करो
बाज़ार में तो सुस्ती-सी छाई है इन दिनों
फ़रमान है कि आज से व्यापार कम करो
लेती नहीं हैंं नाम ये कम होने का कभी
अपनी ज़रूरतों का ही अंबार कम करो
*मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब
आदाब
ऐसा कह कर मुझे शर्मिंदा न करें जनाब.बड़ों का आदर करना हमारी संस्कृति है आदरणीय.जाने अंजाने कुछ गुस्ताखी हो गई हो तो मुआफी दरकार है।
आदरणीय सालिक गणवीर जी, आपकी ज़र्रा नवाज़ी और मान देने के लिए शुक्रिया।
जनाब आख़िरी मिसरे में शायद भूले से "ही" अतिरिक्त टाईप हो गया है, जिस वजह से मिसरा बह्र में नहीं रहा। देखियेगा।
आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' साहिब
आदाब.
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. आपकी इस्लाह पर आपका सुझाया हुआ मतले का सानी मिसरा बदल दिया है, इसके लिए आपको अलग से शुक्रिया. सादर
आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और हौसला अफजाई के लिए मश्कूर-ओ-ममनून हूँ. आपकी इस्लाह पर अमल करते हुए मतला भी बदल दिया है. सादर.
आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, आपको इस ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई! आपकी कलम चल रही है, सो यूँ ही चलाते रहिये - अल्लाह करे ज़ोर-ए-कलम और ज़ियादा!
हुज़ूर, मतले को लेकर (इश्तिहार) आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब से मुत्तफ़िक़ हूँ, और आपको अपने कुछ नाक़िस से मशवरे भी पेश कर रहा हूँ:
उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो
ख़ालिस की है तलब ये अदाकार कम करो
या
उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो
ग़द्दार दो मुझे ये वफ़ादार कम करो
या
उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो
कोई हो बर-ख़िलाफ़ तरफ़दार काम करो
जनाब, दूसरे शेर के ऊला के लिए मशवरा है:
(221 2121 1221 212)
आगे जो सब से है वो ये आदेश दे रहा
चौथे शेर में 'दोस्तो' को 'दोस्तों' कर लीजिये।
पाँचवाँ शे'र लाजवाब है!
छटे शेर में 'फरमान' को 'फ़रमान' कर लीजिये।
सातवें शेर में 'है' को 'हैं' (ज़रूरतें) कर लीजिये।
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, कई उम्दा शैर हुए हैं बधाई स्वीकार करें।
जनाब 'इश्तिहार' शब्द 2121 मात्रिक है जिसे आपने 1221 पर लिया है, देखियेगा।
//आगे बहुत है सबसे वो,ये आदेश दे रहा// ये मिसरा शब्द 'ये' की वजह से बह्र में नहीं है सिर्फ़ 'ये' हटा दीजिए।
//वो मेरे दुश्मनों के गले से लगा रहा
मुझसे कहा कि दोस्तो से प्यार कम करो//. अगर आप चाहें तो इस शैर के शिल्प को और बेहतर कर सकते हैं, देखें :
"जो मेरे दुश्मनों को गले से लगा रहा
वो मुझसे कह रहा है कि बस प्यार कम करो"
//अपनी ज़रूरतों को ही हर बार कम करो//. इस मिसरे को यूँ कर के देख सकते हैं :
"अपनी ज़रूरतों का ये अंबार कम करो"
जनाब, अगर आप को सुझाव पसंद न आएं तो नज़र अन्दाज़ कर दीजिएगा। सादर ।
भाई सुरेंद्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और हौसला अफजाई के लिए तह-ए-दिल से मश्कूर-ओ- ममनून हूँ.
आद0 सालिक गणवीर जी सादर अभिवादन
आपके हवाले से एक बेहतरीन मुरस्सा ग़ज़ल पढ़ने को मिली। शैर दर शैर बधाई स्वीकार कीजिये।
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