(221 2121 1221 212)
हद में कभी थे हद से गुज़रना पड़ा हमें
कई बार जीने के लिए मरना पड़ा हमें
शेरों की माँद में भी कभी बेहिचक गए
दौर-ए-रवाँ में चूहों से डरना पड़ा हमें
आकर समेटता है हमें वो ही बारहा
हर बार टूटते ही बिखरना पड़ा हमें
आए नहीं वो कल भी तो हर बार की तरह
वादे से अपने आज मुकरना पड़ा हमें
मंज़िल भी होती पाँव के नीचे मगर सुनो
उसके लिए रस्ते में ठहरना पड़ा हमें
होते कहीं पे हम भी परीलोक में मगर
ख़्वाबों के पंख फिर से कतरना पड़ा हमें
* मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रवि शुक्ला जी,
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए मश्कूर-ओ-ममनून हूँ.
आदरणीय सलीक गणवीर जी । अच्छे अशआर हुए है। हार्दिक बघाई स्वीकार कीजिये। ख्वाबों के पंख वाले मिसरे में मुझे कछ अटकाव लग रहा है । बहुपचन के अनुसार कााफिया बदल रहा है । सादर ।
आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब.
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए तह-ए-दिल से मश्कूर-ओ-ममनून हूँ. आपकी इस्लाह पर अमल के बाद पुनः पोस्ट करता हूँ, इसके लिए आपको अलग से शुक्रिया अदा करता हूँ. सादर.
क
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें।
/शेरों की माँद में भी कभी बेहिचक गए
इस दौर में चूहों से भी डरना पड़ा हमें/ जनाब इस शैर के सानी मिसरे की तक़तीअ दोबारा देख लीजियेगा या/और अगर चाहें तो इसे यूँ भी कर सकते हैं : "दौर-ए-रवाँ में चूहों से डरना पड़ा हमें"
/मंज़िल भी होती पाँव के नीचे मगर सुनो
उसके लिए रस्ते में ठहरना पड़ा हमें/ इस शैर के सानी मिसरे में लफ़्ज़ "रस्ते" को 12 पर लेना मुनासिब नहीं इसे 22 या 21 मात्रा पर लेना ही दुरुुस्त होगा, मिसरा चाहें तो यूँ कर सकते हैं : "रस्ते में उसके वास्ते रुकना पड़ा हमें"। सादर।
भाई सुरेंद्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए मश्कूर-ओ-ममनून हूँ.
आद0 सलीक गणवीर जी सादर अभिवादन। अच्छे अशआर हुए है। बधाई स्वीकार कीजिये
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online