For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जो नहीं है यार तू पास में तो न रंग-ए-फ़स्ल-ए-बहार हैं (135 )

ग़ज़ल( 11212 11212 11212 11212 )
जो नहीं है यार तू पास में तो न रंग-ए-फ़स्ल-ए-बहार हैं
न है बर्ग-ए-गुल न शमीम-ए-गुल मेरी ज़ीस्त में बचे ख़ार हैं
**
तेरे हिज्र से जो मिले हैं ग़म वही दौलतें हैं मेरी सनम
मेरी फ़िक्र का है सबब तो बस ये बढे हुए ग़म-ए-यार हैं
**
मेरे वास्ते है तू नाज़नीं बड़ी दिलनशीं लगे महज़बीं
अरे क्या हुआ जो ज़बीन पर पड़े चंद नक़्श-ओ-निगार हैं
**
गो है बह्र-ए-इश्क़ ये पुरख़तर प रुका नहीं है कभी सफ़र
भले चंद कस्तियाँ बह्र में हुईं मुश्किलों से ही पार हैं
**
तेरे दम से ही मेरे गीत हैं भले दूर आज तू मीत है
तेरी धुन पे ही तो थिरक रहे मेरे साज़-ए-दिल के ये तार हैं
**
हैं अदू जहाँ में सुकूँ के बस अना फ़िक्र और हसद-ओ-हवस
करे ग़ौर ठीक से गर बशर यही चार हैं यही चार हैं
**
न मिलेगी हूर न ही परी न जहान की कभी सरवरी
दे उन्हें ज़रा सी तो अक़्ल रब जो कि इक भरम के शिकार हैं
**
है मुसीबतों का जो वक़्त अब रखो थाम दामन-ए-सब्र सब
हमें डसने को यहाँ जा ब जा खड़े क़िस्म क़िस्म के मार हैं
**
की अता वबा ने जो बेबसी तो ग़रीब क्या करे ख़ुदक़ुशी
जब अमीर कितने ही बन रहे वबा का 'तुरंत 'शिकार हैं
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 472

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 4, 2021 at 11:39am

एक और बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय...

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 23, 2021 at 10:26pm

 भाई   लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 23, 2021 at 9:30pm

आ. भाई गिरधारी सिह जी, खूबसूरत गजल हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service