For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: ज़ुमुररुद कब किसी मुफ़्लिस के घर चूल्हा जलाता है

1222 1222 1222 1222

ज़ुमुररुद कब किसी मुफ़्लिस के घर चूल्हा जलाता है

मिरी जाँ ये तो बस शाहों कि पोशाकें सजाता है

रिआया भी तो देखो कितनी दीवानी सी लगती है

उसी को ताज़ कहती है जो इनके घर जलाता है

नगर में नफ़रतों के भी महब्बत कौन समझेगा

ए पागल दिल तू वीराने में क्यों बाजा बजाता है

हमारे हौसले तो कब के आज़ी टूट जाते पर

ये नन्हा सा परिंदा है जो आशाएँ जगाता है

कोई बेचे यहाँ आँसू तो कोई ज़िस्म बेचे है

खुदाया पेट भी इंसान से क्या क्या कराता है

गज़ब का इश्क़ है आज़ी ख़ुदा का ख़ुद के बंदो से

कभी दिल तोड़ देता है कभी वादा निभाता है

तमाशा देख कर हमको फ़कत इतना समझ आया

जो कश्ती पार करता है वही कश्ती डुबाता है

न लेकर प्यास लब पर तुम समंदर पर कभी जाना

सुना है ज़ख़्म पर सबके नमक पैहम लगाता है

कहाँ कोई किसी के वास्ते जीता है दुनिया में

कहाँ कोई किसी के वास्ते अब जाँ लुटाता है

चरागों से कोई पूछे फ़कत मज़बूरी का आलम

हवा का साथ भी लाज़िम है और डर भी सताता है

मौलिक व अप्रकाशित

आज़ी तमाम

Views: 676

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Aazi Tamaam on July 13, 2021 at 9:59pm

सादर प्रणाम आ ब्रजेश जी

सहृदय शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई का

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 4, 2021 at 11:42am

आपके प्रयास बड़े अच्छे लगते है भाई आज़ी...बाकी गुरुजनों की नजर है तो सब है।

Comment by Aazi Tamaam on July 1, 2021 at 11:35am

सादर प्रणाम आ धामी सर

हौसला अफ़ज़ाई के लिये सहृदय शुक्रिया

जी धामी सर गुणीजनों के मार्गदर्शन में ग़ज़ल मुकम्मल हुई है

गुणीजनों को दिल से धन्यवाद

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2021 at 5:54am

आ. भाई आज़ी तमाम जी, गजल का प्रयास अच्छा है । हार्दिक बधाई । शेष सुधीजन कह चुके हैं । सादर..

Comment by Aazi Tamaam on June 29, 2021 at 5:59pm

सादर प्रणाम आ अमीर जी

ग़ज़ल तक आने व मार्गदर्शन करने के लिये सहृदय शुक्रिया

जी बदलने का प्रयास करता हूँ मिसरे

सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 28, 2021 at 6:22pm

जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।

ज़ुमुररुद को टाईटल में भी ठीक कर लें।

'तिलिस्मी रत्न बस शाहों कि पोशाकें सजाता है'   इस मिसरे में रत्न के साथ तिलिस्मी शब्द (जादुई) का गठजोड़ उचित नहीं है वैसे भी दोनों शब्द अलग अलग भाषाओं के हैं। यूँ कह सकते हैं - 'जवाहर ये तो बस शाहों  की (not कि* एक मात्रा की छूट ले सकते हैं) पोशाकें सजाता है' 

'उसी को ताज़ कहती है जो इनके घर जलाता है'   इस मिसरे का शिल्प ठीक नहीं है, इसे यूंँ कह सकते हैं - 

'उसी को ताज पहनाती जो इनके घर जलाता है'।    कुछ टंकण त्रुटियों की ओर आपका ध्यानाकर्षण चाहता हूँ, सादर। 

'या रब ये पेट भी इंसान से क्या क्या कराता है'      यहाँ एक मात्रा की छूट न लेकर यूँ कहने से मिसरे में गेयता बढ़ जाएगी - 

'ख़ुदा या पेट भी इंसान से क्या क्या कराता है' 

Comment by Aazi Tamaam on June 27, 2021 at 5:59pm

सादर प्रणाम गुरु जी

गलतियाँ सुझाने व हौसला अफजाई के लिये सहृदय शुक्रिया

ठीक करके फ़िर से पोस्ट करने की कोशिश करता हूँ

सादर गुरु जी

Comment by Samar kabeer on June 27, 2021 at 12:32pm

जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, ग़ज़ल अभी समय चाहती है,बहरहाल इस प्रयास पर बधाई स्वीकार करें ।

'ज़मुर्रद कब किसी मुफ़्लिस के घर चूल्हा जलाता है'

इस मिसरे में सहीह शब्द है "ज़ुमुररुद"

'जम्हूरियत भी तो देखो कितनी दीवानी सी लगती है'

ये मिसरा बह्र में नहीं है,देखिये ।

'नगर में नफ़रतों के इश्क़ इबादत कौन समझेगा'

ये मिसरा बह्र में नहीं है,देखिये ।

'कहाँ कोई किसी को अब यहाँ पर याद रखता है

ज़रा सा क्या हो जाये सुर्ख रू की भूल जाता है'

इस शैर पर मतले का गुमान होता है,सानी का वाक्य विन्यास ठीक नहीं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
53 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service