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उठाकर शहंशह क़लम बोलता है
चढ़ा दो जो सूली पे ग़म बोलता है
ये फरियाद लेकर चला आया है जो
ये काफ़िर बहुत दम ब दम बोलता है
जुबाँ काट दो उसकी हद को बता दो
बड़ा कर जो कद को ख़दम बोलता है
गँवारों की वस्ती है कहता है ज़ालिम
किसे नीच ढा कर सितम बोलता है
बिठाता है सर पर उठाकर उसी को
जो कर दो हर इक सर क़लम बोलता है
बड़ी बेबसी में है जीता वो ख़ादिम
बड़ाकर जो हर ज़ख़्म कम बोलता है
खटकता है ममलूक आज़ाद क्यों हैं
हों इन्सां की जातें अहम बोलता है
फ़क़त रोक ने पर ही मनमानियों को
कि हर धर्म क्यों मुख़्ततम बोलता है
बताते हैं ख़ुद को जो इक कद्द-ए-आदम
उन्हें कौन कब क्रूर कम बोलता है
हक-ए-दर ग़रज़ पर फ़ना होने आये
फ़क़िरों का जज़्ब ए दम बोलता है
हमें सूलियां क्या मिटा पायेंगी अब
जख़ीरों का हर इक क़दम बोलता है
यहीं ख़ाक होना तुझे भी मुझे भी
किसे फ़िर तू वाइज़ अधम बोलता है
लगाता नहीं कोई अब मरहम "आज़ी"
दिली मरहमों को अलम बोलता है
मुख़्ततम - समाप्त
मौलिक व अप्रकाशित
आज़ी तमाम
Comment
सादर प्रणाम गुरु जी
सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल तक आने व बारीकियों से गलतियां बताने के लिये
जी गुरु में ख़तम और वहम की जगह कुछ और खोजने का प्रयास करता हूँ
बाकी शैर भी दुरुस्त करने की कोशिश करता हूँ
सादर
जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, ग़ज़ल अभी समय चाहती है ।
'उठाकर शहंशाह क़लम बोलता है'
इस मिसरे में 'शहंशाह' को "शहंशह' कर लें,वज़्न दुरुस्त हो ज़्एएग ।
'गलीचों की वस्ती है कहता है ज़ालिम'
इस मिसरे में 'गलीचों' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द 'ग़ालीचा' और इसका बहुवचन 'ग़ालीचों' होगा ।
'कि हर धर्म ख़ुद को ख़तम बोलता है'
इस मिसरे पर जनाब निलेश जी बता ही चुके हैं, एक बात ध्यान में रखें कि फ़िल्मी गाने काम चलाऊ होते हैं,और शाइर आम नहीं ख़ास होता है,उम्मीद है समझ गये होंगे ।
'ज़माना उन्हें बे-रहम बोलता है'
इस मिसरे में सहीह शब्द 'बेरह्म' 221 है,देखियेगा ।
'फ़क़िरों का जज्बा ए दम बोलता है'
इस मिसरे में 'जज़्ब-ए-दम' सहीह शब्द है ।
मक़्ते के सानी पर भी जनाब निलेश जी बता चुके हैं ।
सादर प्रणाम आ धामी सर
हौसला अफ़ज़ाई के लिये सहृदय शुक्रिया
सर ख़तम की जगह बे दम और वहम की जगह सितम सही वज्न के साथ आ तो जायेंगे लेकिन
शैर की तीव्रता कम हो जायेगी
सादर
आ. भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन । गजल का प्रयास अच्छा है । हार्दिक बधाई।
भाई नीलेश जी की बात पर गौर करें । यदि इस तरह लेना सही होता तो वे ऐसा कतई नहीं कहते । सादर...
सादर प्रणाम आ नीलेश जी
सहृदय शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई के लिये
जी सर मात्राएँ 21 हैं दोनों की लेकिन क्या हम आम तद्भव बोलचाल वाली भाषा के हिसाब से इनको नहीं रख सकते सर क्योंकि हमरी अटरिया पे जो गाना है उसमें खत्म को खतम उच्चारण किया गया है सुनने में अच्छा भी लगता है
सुझाव दें
सादर
आ. आज़ी भाई,
अच्छा प्रयास हुआ है ग़ज़ल का...
खतम और वहम की मात्राएँ देख लें..
सादर
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