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एक सजनिया चली अकेली

संग न कोई सखी सहेली,
रूप छुपाए लाजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

मधुर मिलन की आस सँजोए,
वह जब कदम बढ़ाती है।
जल थल नभ की नीरवता से,
आहट तम की आती है।
चार पहर की कठिन डगरिया,
पर इठलाती नाजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

धवल चाँदनी बिखरी नभ में,
खिली यामिनी धरती पर।
बसंत बहार कहीं मल्हार,
मधुर रागिनी जगती पर।
आतुर हो बढ़ती वह जैसे,
राधा मुरली बाजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

नभ मंडल में बिखरे तारे,
चाँद क्षितिज के पार चला।
तम निकला झुरमुट से बाहर,
अपनी बाँह पसार चला।
जड़-चेतन से मिटा धर्म कब?
हृदय मलिन तन माजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

ओझल हुए गगन के तारे,
बादल छाए अंबर में।
तिमिर करे कैसे मनमानी?
दीप जले जब अंतर में।
राह सजनिया भूले कैसे?
सुरति जगी हिय गाजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

फैला माया जाल तिमिर का,
इक झोंके से बुझा दिया।
इक द्युति भारी अँधियारे पर,
यह जुगनूँ ने सुझा दिया।
बस इक ज्योति जगाकर देखो,
तम-रजनी के भाजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

आई आँधी बरसे बादल,
जुगनूँ भी सब गए बिखर।
रूप धरा विकराल तमस ने,
सजनी फिर भी चली निडर।
अग्नि विरह की उसके भीतर,
बुझी न बरखा सावन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

प्रिय प्रभात से मिलने को वह,
अपना सब कुछ वार गई।
कैसा है यह नियम प्रकृति का!
रजनी जिससे हार गई।
एक छुअन पर सजना उसका,
मिल ना पाई साजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Dharmendra Kumar Yadav on August 8, 2021 at 9:38pm

आ. भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर', सप्रेम नमस्कार। रचना को आपने सराहा इसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2021 at 1:33pm

आ. भाई धर्मेंद्र जी, अभिवादन। इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by Dharmendra Kumar Yadav on August 8, 2021 at 11:49am

आदरणीय समर कबीर जी, शुक्रिया। आपके सुझाव पर श्रद्धापूर्वक अमल करने का प्रयास करूँगा।

Comment by Samar kabeer on August 3, 2021 at 6:55pm

जनाब धर्मेन्द्र कुमार यादव जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया मंच पर अपनी सक्रियता बनाएँ ।

Comment by Dharmendra Kumar Yadav on August 2, 2021 at 7:56pm

आप जैसे वरिष्ठ शायर द्वारा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 1, 2021 at 9:54pm

आदरणीय धर्मेंद्र कुमार यादव जी आदाब, सुंदर गीत लयबद्ध किया है आपने, बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें।  सादर। 

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