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आज मैखाने का दस्तूर अज़ब है साक़ी |

 

आज मैखाने का दस्तूर अज़ब  है साक़ी |

जाम दिखता नहीं पर बाकी तो सब है साक़ी ।

 

मयकशी के लिए अब  मैं भी चला आया हूँ    

तेरी आँखों से ही पीने की तलब है साक़ी|

 

भूल जाता हूं मैं दुनिया के सभी रंजो अलम

जाम नज़रों का तेरे हाय गज़ब है साक़ी|

 

अपनी आँखों से ही इक जाम पिला दे मुझको

तेरे मयख़ाने में ये आख़िरी शब है साक़ी|

 

तेरी चौखट की तो ये बात निराली लगती

जाति मजहब न कोई नस्ल–नसब है साक़ी|

 

दर्दो ग़म अपने भूलाने को चला आता हूँ

वरना पीने का कहां और सबब है साक़ी|

 डॉ. बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’

स्वरचित व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 10, 2022 at 7:16pm

ममनून हूँ..........

आपसब का आशीर्वाद मिला |

शुक्रिया |

Comment by Mahendra Kumar on November 7, 2022 at 8:06pm

अच्छी ग़ज़ल है आदरणीय डॉ. बैजनाथ जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।

Comment by Samar kabeer on November 5, 2022 at 6:36pm

जमाब बैजनाथ शर्मा 'मिंटू' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्चा है, बधाई स्वीकार करें I 

टंकण त्रुटियों की तरफ़ ध्यान दें I 

Comment by Zaif on November 3, 2022 at 11:53pm

मयकशी के लिए अब मैं भी चला आया हूँ

तेरी आँखों से ही पीने की तलब है साक़ी| अहा कमाल।

बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आदरणीय मिंटू जी। दाद क़ुबूल फरमाएं।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2022 at 7:01pm

आदरणीय शर्मा जी बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल कही है...बह्र लिख देने से समझने में आसानी होती...सादर

कृपया ध्यान दे...

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