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रिश्तों का विशाल रूप, पूर्ण चन्द्र का स्वरूप,

छाँव धूप नूर-ज़ार, प्यार होतीं बेटियाँ।

वंश  के  विराट  वृक्ष के  तने  पे  डाल  और,

पात  संग  फूल सा  शृंगार होतीं बेटियाँ।

बाँधती  दिलों  की  डोर, देखती न ओर छोर,

रेशमी  हिसार  ताबदार  होतीं बेटियाँ।

दो  घरों  के  बीच  एक   सेतु सी कमानदार,

राह  फूल-दार  साज़गार  होतीं बेटियाँ।।

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अशोक रक्ताले ‘फणीन्द्र’

 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on Wednesday

आदरणीय शिज्जू भाई, घनाक्षरी या सवैया जिन्हें उनकी कुल मात्रिकता के कारण वृत्त या दण्डक की श्रेणी का कहते हैं, के वाचन की यानी पढ़ने की विशेष लयात्मक प्रक्रिया होती है। इससेउनका पाठ सहज हो जाता है। फिर भी, यह रचनाकारों को इन रचनाओं में शब्दों के गठन-निरूपण के क्रम में किसी समझौता करने की छूट या कोई कारण उपलब्ध नहीं कराती। वस्तुत:, ऐसी वाचन-प्रक्रिया प्रत्येक छंद के साथ हुआ करती है। 

आदरणीय अशोक भाई की प्रस्तुति में शब्दों का गठन शैल्पिक तो है ही, तार्किक भी है। इसी कारण मैं उनकी इस रचना पर सकारात्मक टिप्पणी कर पाया। 

विश्वास है, आप इस रचना पर मेरी टिप्पणी का आशय समझ सके होंगे। 

शुभ-शुभ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on Wednesday

आदरणीय अशोक रक्ताले सर, जी बेहतर की संभावना तो हर जगह होती है, मगर मेरे कहने का आशय यह नहीं था। 'और' के बाद का कथन अगली पंक्ति में है, इसलिए मैं  अटक रहा था। मैंने कई बार पढ़ा और ज़रा ठहरकर पढ़ा तो रवानी बेहतर समझ में आई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on Tuesday

अय हय, हय हय, हय हय... क्या ही सुंदर, भावमय रचना प्रस्तुत की है आपने, आदरणीय अशोक भाईजी.

मनहरण घनाक्षरी का प्रस्तुत बंद न केवल भावमय है, शिल्पगत और सुगढ़ भी है. वाचन क्रम में प्रवाहमय है. 

हार्दिक बधाइयाँ 

शुभातिशुभ

Comment by Ashok Kumar Raktale on Tuesday

आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर, प्रस्तुत घनाक्षरी की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. 16,15 =31 वर्णों की यह छंद रचना है. गेयता में मुझे तो कोई अटकाव नहीं समझ आ रहा है. किन्तु आप कह रहे हैं तो अवश्य ही मैं विचार करूंगा कहाँ बेहतर किया जा सकता है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on Tuesday

आदरणीय अशोक रक्ताले सर, प्रस्तुत रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।

तीसरी और चौथी पंक्तियों को पढ़ते समय मैं थोड़ा अटक रहा हूँ। इसके शिल्प पर मेरी जानकारी कम शायद यह वजह हो।

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