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अब तो दिन ढल चूका है चले आईये
दिल धड़कने लगा है चले आईये

जाने फिर अब मुलाकात हो न हो
दिल लबों पर रुका है चले आईये

भीग कर रुक न जाए कही आज फिर
देखो बादल उठा है चले आईये

दिल परेशा है नींद आती नहीं
दीप बुझने लगा है चले आईये

दिल की दहलीज़ पर आकर रुक क्यों गए
सारा घर आपका है चले आईये

मेरे दिल में एक काँटा चुभा है "अलीम"
ख़त उन्होंने लिखा है चले आईये

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Comment by विवेक मिश्र on April 16, 2010 at 11:42am
आपकी बेताबी और "उनको" बुलाने का अंदाज़ पसंद आया.. ऐसे ही लिखते रहिए..
Comment by Babita Gupta on April 16, 2010 at 10:09am
So nice, achha likha hai,
मेरे दिल में एक काँटा चुभा है "अलीम"
ख़त उन्होंने लिखा है चले आईये
bahut sundar,
Comment by Sanjay Kumar Singh on April 16, 2010 at 8:19am
Badiya Rachna hai,aleem jee,aisey hi likhatey rahey to bahut aagey jayengey,Dhanyabad ees post key liyey,
Comment by Admin on April 15, 2010 at 6:02pm
अलीम साहब आपने जबरदस्त लिखा है जबाब नहीं है आपकी लेखनी का, एक बेहतरीन और उम्द्दा रचना, हमे आगे भी इसी तरह के पोस्ट का बेसब्री से इन्तजार रहेगा, धन्यवाद आपका ,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 15, 2010 at 5:37pm
अलीम भाई , बहुत ही बढ़िया गज़ल आप लिख रहे है, काफी दिल की करीब है ये आपकी रचना ,बहुत खूब , बस ऐसे ही आप लिखते रहिये यही ऊपर वाले से कामना करते है, आप की ये लाइन मुझे काफी अच्छी लगी.... धन्यबाद
दिल की दहलीज़ पर आकर रुक क्यों गए
सारा घर आपका है चले आईये
Comment by aleem azmi on April 15, 2010 at 4:38pm
aap sabhi ka comments hamare liye hausala afzai hogi...

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