For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - मुस्करा के वेबजह ना मेहरबानी कीजिये

खेलिए ज़ज़्बात से मत  खौफ़ तारी कीजिये 
मुस्करा के वेबजह ना  मेहरबानी  कीजिये 
.
छेडिये इक जंग ग़ुरबत को मिटाने के लिए 
घोषणा मत खोखली या मुँह जबानी कीजिये 
.
कौन है जो चांदनी का नूर फैलाता है अब
सोचिये कुछ सोचिये कुछ मगजमारी कीजिये 
.
आईए करिए मनौव्वर इस जहां को इल्म से  -
बात खुलकर हर किसी से प्यारी-प्यारी कीजिए
.
बैठे - बैठे प्यास का मसअला होगा नहीं हल-
बात तब है , पत्थरों में नहर ज़ारी कीजिये 
.
राम औ रहमान दोनो हैं अलग कहके प्रभात 
देश की आवाम को न पानी - पानी कीजिये 
.
रवीन्द्र प्रभात 

Views: 835

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tilak Raj Kapoor on April 10, 2012 at 4:01pm
छेडिये इक जंग ग़ुरबत को मिटाने के लिए
घोषणा मत खोखली या मुँह जबानी कीजिये!
बहुत खूब।
Comment by वीनस केसरी on April 6, 2012 at 12:33am

वाह, बदलाव से रचना में शिल्पगत सुधार हुआ है

बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 4, 2012 at 4:52pm

ye hui na baat ab is ghazal ki baat hi kuch aur hai .....lajabaab.

Comment by Ravindra Prabhat on April 4, 2012 at 4:41pm

सृजन में सहयोग और वहुमूली सुझाव  हेतु एक बार फिर आप सभी का  शुक्रिया !

Comment by Abhinav Arun on April 4, 2012 at 4:08pm
आईए करिए मनौव्वर इस जहां को इल्म से  -
बात खुलकर हर किसी से प्यारी-प्यारी कीजिए 
bahut khoob shri prabhaat ji hardik badhai is gazal aur uske har sher ke liye !!

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on April 4, 2012 at 2:54pm

मतले में काफिया परिवर्तन के बाद न केवल हर्फ़-ए-रवी वाला दोष दुरुस्त हुआ है बल्कि ग़ज़ल का चेहरा मोहरा और भी निखर कर सामने आया है आदरणीय प्रभात जी.

Comment by Ravindra Prabhat on April 4, 2012 at 11:30am

इस जानकारी के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आपका योगराज जी,हल्के से फेरवदल के साथ इसे दुरुस्त करता हूँ !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 4, 2012 at 11:26am
योगराज जी सही फरमा रहे हैं रविन्द्र जी अगर आप शुरू से ही काफिये को फोलो  न करें आर्थात पहले शेर की दूसरी लाइन में नी की बजाये कोई और वर्नान्तक शब्द चुने तो पूरी 
ग़ज़ल लाजबाब हो जाए गी आप कर के तो देखिये

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on April 4, 2012 at 11:13am

आदरणीय प्रभात जी,

आपने  जो फ़रमाया सही है, लेकिन यहाँ मैं बड़े अदब से अर्ज़ करना चाहूँगा कि इस ग़ज़ल के मतले में "मेहरबानी" ओर "पानी" काफिये बाँध कर शायर ने "नी" के "न" को हर्फ़-ए-रवी घोषित कर दिया है. इल्म-ए-अरूज़ के मुताबिक जो हर्फ़-ए-रवी एक बार मुक़र्रर हो जाए, तो उसका निर्वाह अंत तक करना ही होता है. हाँ, यदि मिसरा-ए-ऊला में "मेहरबानी" के साथ सानी में "प्यारी", "जारी" या बड़ी "ई" की मात्रा वाला कोई भी अन्य व्यंजन इस्तेमाल कर लिया जाता  तब यह बंदिश ना रहती. सादर.

Comment by Ravindra Prabhat on April 4, 2012 at 11:04am

ग़ज़ल में हल्के-फुल्के सुधार की गुंजायश है और  वीनस केशरी जी की बातों से मैं सहमत हूँ कि इस ग़ज़ल में शिल्पगत कसाव आवश्यक है, किन्तु योगराज जी की बातों से मैं सहमत नहीं कि  काफिये का निर्वहन सही नहीं हुआ है , क्योंकि ग़ज़ल में पानी, नानी, छानी लिखने से वज्नो-वहर दुरुस्त नहीं होता ! कभी-कभी बिना काफिये की भी ग़ज़ल कही जाती है और कभी-कभी काफिये के वजन के अनुसार  काफिये  प्रयुक्त होते हैं .

हौसला-अफजाई के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी।"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"नमस्कार। प्रदत्त विषय पर एक महत्वपूर्ण समसामयिक आम अनुभव को बढ़िया लघुकथा के माध्यम से साझा करने…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीया प्रतिभा जी आपने रचना के मूल भाव को खूब पकड़ा है। हार्दिक बधाई। फिर भी आदरणीय मनन जी से…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"घर-आंगन रमा की यादें एक बार फिर जाग गई। कल राहुल का टिफिन बनाकर उसे कॉलेज के लिए भेजते हुए रमा को…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदाब। रचना पटल पर आपकी उपस्थिति, अनुमोदन और सुझाव हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।…"
10 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आपका आभार आदरणीय वामनकर जी।"
11 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आपका आभार आदरणीय उस्मानी जी।"
11 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीया प्रतिभा जी,आपका आभार।"
11 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"  ऑनलाइन शॉपिंग ने खरीदारी के मापदंड ही बदल दिये हैं।जरूरत से बहुत अधिक संचय की होड़ लगी…"
12 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीय मनन सिंह जी जितना मैं समझ पाई.रचना का मूल भाव है. देश के दो मुख्य दलों द्वारा बापू के नाम को…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"जुतयाई (लघुकथा): "..और भाई बहुत दिनों बाद दिखे यहां? क्या हालचाल है़ंं अब?""तू तो…"
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service