कांच के जज़्बात, हिम्मत कांच की
यार ये कैसी है इज्जत कांच की
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पालते हैं खोखले आदर्श हम-
माँगते हैं लोग मन्नत कांच की
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पत्थरों के शहर में महफूज़ है-
देखिये अपनी भी किस्मत कांच की
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चुभ…
ContinueAdded by Ravindra Prabhat on March 11, 2016 at 2:53pm — 2 Comments
इस बार बारिशें देर से हुई है। हुई भी तो क्या न खेत खलिहान भीगे, न डबडबाया बड़ा बाला ताल । उमगती रह गई घाघरा इधर से उधर। न नानी का कवनों टोटका काम आया न नंग-धरंग बच्चों का अनुष्ठान । कभी उत्तर से तो कभी दक्षिण से, कभी पूरब से तो कभी पश्चिम से रह-रहके एक ही आवाज आती रही ‘‘काल-कलौती-पीयर-धोती मेघा सारे पानी दे’’। बच्चों के अनुरोध पर पानी तो दिया इंद्र भगवान ने मगर मूत के बराबर । कायदे से न ढोर-डांगर भीगे न ताल-तलैया । चारो तरफ बस कीचड़ हीं कीचड़ । जिस तरह से बादर उमड़ घुमड़ आये थे, लग रहा था झम के…
ContinueAdded by Ravindra Prabhat on July 7, 2012 at 11:26am — 5 Comments
Added by Ravindra Prabhat on April 3, 2012 at 7:30pm — 16 Comments
भूख-वहशी , भ्रम -इबादत वजह क्या है
हो गयी नंगी सियासत, वजह क्या है ?
मछलियों को श्वेत बगुलों की तरफ से -
मिल रही क्या खूब दावत, वजह क्या है ?
राजपथ पर लड़ रहे हैं भेडिये सब…
ContinueAdded by Ravindra Prabhat on May 24, 2011 at 11:31am — 2 Comments
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