For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अरुणिम सूरज जिस दिन  मुझसे शर्त लगा झुक जाएगा,

जिस दिन सपनों के कानों में कोई सर्द आह भर जाएगा,

उस दिन भारत को  भेंट करेंगे  कफन एक सो जाने को,

जिस दिन बहता शोणित अपना  क्षार क्षार  हो जाएगा।।

 

तब तक चुप  कैसे हम हों  जब तक  छाती में गर्मी है,

जब  तक  स्वप्न  बाँध  पैरों में  भावों में  सरगर्मी है,

तब  तक  बेकल  इंतजार  करता है  रक्त  उड़ानों का,

जब तक खद्दर और खाकी का केवल मतलब बेशर्मी है।।

 

कलम अधूरे  अक्षर  लिख कर  कहाँ  चैन से सोती है,

किस घर की  मर्यादा  लुटकर  जिंदा रहने को रोती है,

किसने  सपने  देखे  भूखे ही  मर जाने के,  अब तक

वो जिंदा है  जिसने  लूटा  भारत को  मान बपौती है।।

 

हम  सोने वाले  सिंहों को  सिंहों में  नहीं गिना करते,

हर  सहने वाले  मानव को  युधिष्ठिर नहीं कहा करते,

हर पल  मर मर कर  जीने का  कैसे नाम  जिंदगी है,

जो रुक जाए अवरोधों से उसको धारा नहीं कहा करते।।

 

वो नहीं जानते जब  भारत का  शौर्य  करवटें बदलेगा,

केवल  इसका  इतिहास  नहीं  भूगोल  कहानी बाँचेगा,

तब  रातों के  अँधियारे  जुगनूँ से  धुंधले  पड़ जाएंगे,

बच्चे सूरज की किरणों पर चढ़ रश्मिरथी बन जाएंगे।।

Views: 398

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2012 at 1:20pm

प्रयासरत रहें नीरजभाईजी. आपकी कविता पर दीखता ’प्रभाव’ निरंतर और दीर्घकालिक प्रयास से न केवल दूर होगा आपकी रचना को जो उठान मिलती दीख रही है, सुलभ भी हो जायेगा.

प्रस्तुत रचना की कुछ पंक्तियाँ वास्तव में प्रभावशाली बन पड़ी हैं. आपको इस प्रयास के लिये हृदय से बधाइयाँ देता हूँ. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 2, 2012 at 10:25am

हर  सहने वाले  मानव को  युधिष्ठिर नहीं कहा करते.......

वाह वाह, बहुत ही सुन्दर रचना नीरज जी, बढ़िया ख्यालात है , बधाई स्वीकार कीजिये |

Comment by MAHIMA SHREE on May 1, 2012 at 10:15pm

हम  सोने वाले  सिंहों को  सिंहों में  नहीं गिना करते,

हर  सहने वाले  मानव को  युधिष्ठिर नहीं कहा करते,

हर पल  मर मर कर  जीने का  कैसे नाम  जिंदगी है,

जो रुक जाए अवरोधों से उसको धारा नहीं कहा करते।।

नीरज जी बहुत ही अच्छी रचना बधाई स्वीकार करें

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 30, 2012 at 5:25pm

कलम अधूरे  अक्षर  लिख कर  कहाँ  चैन से सोती है,

किस घर की  मर्यादा  लुटकर  जिंदा रहने को रोती है,

किसने  सपने  देखे  भूखे ही  मर जाने के,  अब तक

वो जिंदा है  जिसने  लूटा  भारत को  मान बपौती है।।

 बहुत ही सुन्दर कृति हार्दिक बधाई स्वीकार करें नीरज द्विवेदी जी

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 28, 2012 at 4:13pm

हम  सोने वाले  सिंहों को  सिंहों में  नहीं गिना करते,

हर  सहने वाले  मानव को  युधिष्ठिर नहीं कहा करते,

हर पल  मर मर कर  जीने का  कैसे नाम  जिंदगी है,

जो रुक जाए अवरोधों से उसको धारा नहीं कहा करते।।

aadarniy niraj ji, saadar.

josh jagati rachna, badhai. utkrsht.

 

Comment by Abhinav Arun on April 28, 2012 at 12:44pm

बहुत सशक्त रचना हार्दिक बधाई -

कलम अधूरे  अक्षर  लिख कर  कहाँ  चैन से सोती है,

किस घर की  मर्यादा  लुटकर  जिंदा रहने को रोती है,

किसने  सपने  देखे  भूखे ही  मर जाने के,  अब तक

वो जिंदा है  जिसने  लूटा  भारत को  मान बपौती है।।

नीरज जी रचना बोल रही hai आपकी कलम को नमन hai !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
20 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"अच्छे दोहें हुए, आ. सुशील सरना साहब ! लेकिन तीसरे दोहे के द्वितीय चरण को, "सागर सूना…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion गीतिका छंद in the group भारतीय छंद विधान
"राम बोलो श्याम बोलो छंद होगा गीतिका। शैव बोलो शक्ति बोलो छंद ऐसी रीति का।। लोग बोलें आप बोलें छंद…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कुण्डलिया छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार। कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार। पाता है आकार, छंद शब्दों में…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion चौपाई : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"सोलह सोलह भार जमाते ।चौपाई का छंद बनाते।। त्रिकल त्रिकल का जोड़ मिलाते। दो कल चौकाल साथ बिठाते।। दो…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service