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जला के "दीप" वो शोले बुझाने में मजा आए

ग़ज़ल या गीत गा के सुर मिलाने में मजा आए
बने जब धुन जुदा सी तो सुनाने में मजा आए

न सोना हो सका मुमकिन न जगने में सुकूँ पाया
जगे खुद यार को भी यूँ जगाने में मजा आए

गजब है इश्क ये मौला समझना है बहुत मुश्किल
बिछड़ के यार से खुद को रुलाने में मजा आए

कहानी वो परिस्तां की जहाँ हो चाँद तारों का
अजब हो दास्ताँ तो फिर सुनाने में मजा आए

अगर मालूम हो जाये कि रूठा यार मुझसे क्यूँ
बनू नादान फिर भी मैं मनाने में मजा आए

न रो पाए न हँस पाए मजाकी यार सब मेरे
सुना वो बात यारों को सताने में मजा आए

लगी है आग दिल में बेबफाई सोच के लेकिन
जला के "दीप" वो शोले बुझाने में मजा आए

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by Albela Khatri on June 3, 2012 at 8:49pm

भाई संदीप पटेल जी,  बधाई.......
यों तो पूरी ग़ज़ल कमाल है..लेकिन
ये बात मेरे मन को बहुत भाई :

कहानी वो परिस्तां की जहाँ हो चाँद तारों का

अजब हो दास्ताँ तो फिर सुनाने में मजा आए

वाह वाह वाह

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 3, 2012 at 7:44pm

बहेतरीन अंतरा हर एक अंतरा में जाँन है 

नज्म ने बीते दिनों की दांस्ता .......

जाने दो यारों ....

जला के दीप वो शोले बुझाने में मजा आये..... बढ़िया है

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 3, 2012 at 7:07pm

तुम रूठे रहो मैं मनाता रहूँ 

वाह संदीप जी क्या कहने , बधाई 

Comment by Rekha Joshi on June 3, 2012 at 6:02pm

Sandip ji ,

कहानी वो परिस्तां की जहाँ हो चाँद तारों का
अजब हो दास्ताँ तो फिर सुनाने में मजा आए,mazaa aa gaya ,badhai 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 3, 2012 at 5:31pm

गजब है इश्क ये मौला समझना है बहुत मुश्किल
बिछड़ के यार से खुद को रुलाने में मजा आए................बहुत उम्दा शेर संदीप जी !बधाई हो !

Comment by chandan rai on June 3, 2012 at 3:41pm
कहानी वो परिस्तां की जहाँ हो चाँद तारों का
अजब हो दास्ताँ तो फिर सुनाने में मजा आए


वाह मित्र ! कमाल का लिखा

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