बे-अदब आबाद होते जा रहे हैं
इल्म है बरबाद होते जा रहे हैं
देख कर गम इस जमाने का कहें क्या
सब दिले-नाशाद होते जा रहे हैं
गम हमारे देख अपनों को न गम हो
इसलिए हम शाद होते जा रहे हैं
चोर ही जाबित यहाँ पग पग लुटेरे
नाम के आज़ाद होते जा रहे हैं
मुल्क को जो लूट अपनी जेब भरते
अब वही हमदाद होते जा रहे हैं
बे-बहर ग़ज़लें लिखी जिसने यहाँ वो
साहिबे ईजाद होते जा रहे हैं
शारदा ने करम जिस जिस पे किया है
"दीप" वो उस्ताद होते जा रहें हैं
संदीप पटेल "दीप"
Comment
बे-बहर ग़ज़लें लिखी जिसने यहाँ वो
साहिबे ईजाद होते जा रहे हैं
शारदा ने करम जिस जिस पे किया है
"दीप" वो उस्ताद होते जा रहें हैं
बहुत बढ़िया संदीप जी .. बधाई आपको
वाह संदीप कुमार पटेल जी,
बहुत अच्छा लगा
बे-बहर ग़ज़लें लिखी जिसने यहाँ वो
साहिबे ईजाद होते जा रहे हैं
____तीर मार रहे हो.............. जय हो
उर्दू के शब्दों ने गजल में आभूषण का कार्य किया
बस दीप जलता रहे हम आरती लेते रहें.....
अच्छी गजल
शारदा ने करम जिस जिस पे किया है
"दीप" वो उस्ताद होते जा रहें हैं
कृपा बनी रहे. रचना पढ़ने को मिलती रहे. बधाई.
Sandip ji
मुल्क को जो लूट अपनी जेब भरते
अब वही हमदाद होते जा रहे हैं,badhiya rachna ,badhai
बे-बहर ग़ज़लें लिखी जिसने यहाँ वो
साहिबे ईजाद होते जा रहे हैं:))))
भई संदीप कुमार जी आप भी ग़ज़लों के उस्ताद होते जा रहे हैं
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