इश्क में बरबाद होते जा रहे हैं
अन सुनी फ़रियाद होते जा रहे हैं
प्यार का हमको सलीका क्यूँ न आया
क्यूँ दिले-नाशाद होते जा रहे हैं
जख्म अब गहरे छुपा के मुस्कुराते
दिन-ब-दिन हम शाद होते जा रहे हैं
नफरतों के फूल जिनसे चुन लिए थे
वो चमन आबाद होते जा रहे हैं
जुल्फ से देकर रिहाई दीप हमको
वो खुदी आज़ाद होते जा रहे हैं
Comment
जख्म अब गहरे छुपा के मुस्कुराते
दिन-ब-दिन हम शाद होते जा रहे हैं
आदरणीय संदीप जी
बहुत खूब .. बधाई स्वीकार करें
Sandip ji ,bahut badhiya gazal ,
नफरतों के फूल जिनसे चुन लिए थे
वो चमन आबाद होते जा रहे हैं,badhai
नफरतों के फूल जिनसे चुन लिए थे
वो चमन आबाद होते जा रहे हैं
क्या बात है बहुत बढिया
मैंने जो ग़ज़ल आज लिखी है वो आपको पसंद आई इससे मेरा लिखना सफल हो गया
और अगली बार मैं ऐसी त्रुटियाँ नहीं करूँगा आप निश्चिन्त रहें
आप अपने स्नेह बनाये रखिये हम छोटों पर
आपका बहुत बहुत आभार
सादर नमन
आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अलबेला सर जी
आपकी वाह वाही से मन प्रसन्न हो उठा है आपका सादर आभार
क्षमा चाहता हूँ सर जी मैंने ये शेर अभी अलग कर दिया है
ये दूसरी ग़ज़ल में आयेंगे
संदीप जी, अच्छी ग़ज़ल कही है, ख्याल भी खुबसूरत हैं , एक सुझाव है कि कोई भी पोस्ट करने से पहले एक दो बार अवश्य पढ़ लिया करें, टंकण त्रुटी या अन्य अशुद्धियाँ पकड़ में आ जाती हैं |
बे-बहर ग़ज़लें लिखी जिसने यहाँ वो
साहिबे ईजाद होते जा रहे हैं
बहुत बहुत बधाई इस अभिव्यक्ति पर |
kya baat hai
bahut khoob sandeep patel deep saheb
शारदा ने है दिया वरदान जिसको
"दीप" वो उस्ताद होते जा रहें हैं
jiyo jiyo...kya baat hai...badhaai
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