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इश्क में बरबाद होते जा रहे हैं

इश्क में बरबाद होते जा रहे हैं
अन सुनी फ़रियाद होते जा रहे हैं

प्यार का हमको सलीका क्यूँ न आया
क्यूँ दिले-नाशाद होते जा रहे हैं

जख्म अब गहरे छुपा के मुस्कुराते
दिन-ब-दिन हम शाद होते जा रहे हैं

कैद उनकी जुल्फ में आशिक परिंदे
और वो सैयाद होते जा रहे हैं


नफरतों के फूल जिनसे चुन लिए थे
वो चमन आबाद होते जा रहे हैं

जुल्फ से देकर रिहाई दीप हमको
वो खुदी आज़ाद होते जा रहे हैं

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Comment

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Comment by Bishwajit yadav on June 3, 2012 at 11:09pm
वाह! वाह! बहुत सुंदर संदीप जा आपने ने शब्दो को बहुत सुंदर ढंग से सजाया है

ये दो पक्तियाँ तो टच माई दिल
जख्म अब गहरे छुपा के मुस्कुराते
दिन-ब-दिन हम शाद होते जा रहे हैं
Comment by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 9:58pm

जख्म अब गहरे छुपा के मुस्कुराते
दिन-ब-दिन हम शाद होते जा रहे हैं

कैद उनकी जुल्फ में आशिक परिंदे
और वो सैयाद होते जा रहे हैं

आदरणीय संदीप जी

बहुत खूब .. बधाई स्वीकार करें

Comment by Rekha Joshi on June 3, 2012 at 5:53pm

Sandip ji ,bahut badhiya gazal ,

नफरतों के फूल जिनसे चुन लिए थे 
वो चमन आबाद होते जा रहे हैं,badhai 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 3, 2012 at 4:43pm
अच्छे भावो के अभिव्यक्ति है, बधाई 
किन्तु इश्क के दूसरे अर्थो में -
इश्क में बर्बाद होते जा रहे है, 
इश्क से ही आबाद होते है 
इश्क कोई जुल्म नहीं, बंधन नहीं, प्यार में  
राधा औ कृष्ण का इश्क समझ,   
धनात्मक सोच के सच्चे इश्क के-
 सलीके को नमन करते है 
 |-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment by chandan rai on June 3, 2012 at 3:45pm
नफरतों के फूल जिनसे चुन लिए थे
वो चमन आबाद होते जा रहे हैं

वाह मित्र ! कमाल का ग़ज़ल लिखा
Comment by UMASHANKER MISHRA on June 3, 2012 at 10:18am

नफरतों के फूल जिनसे चुन लिए थे
वो चमन आबाद होते जा रहे हैं

क्या बात है बहुत बढिया

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 2, 2012 at 8:26pm
आदरणीय Ganesh Jee "Bagi" सर जी सादर नमन

मैंने जो ग़ज़ल आज लिखी है वो आपको पसंद आई इससे मेरा लिखना सफल हो गया

और अगली बार मैं ऐसी त्रुटियाँ नहीं करूँगा आप निश्चिन्त रहें

आप अपने स्नेह बनाये रखिये हम छोटों पर

आपका बहुत बहुत आभार

सादर नमन

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 2, 2012 at 8:24pm

आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अलबेला सर जी
आपकी वाह वाही से मन प्रसन्न हो उठा है आपका सादर आभार
क्षमा चाहता हूँ सर जी मैंने ये शेर अभी अलग कर दिया है
ये दूसरी ग़ज़ल में आयेंगे


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 2, 2012 at 4:44pm

संदीप जी, अच्छी ग़ज़ल कही है, ख्याल भी खुबसूरत हैं , एक सुझाव है कि कोई भी पोस्ट करने से पहले एक दो बार अवश्य पढ़ लिया करें, टंकण त्रुटी या अन्य अशुद्धियाँ पकड़ में आ जाती हैं |

बे-बहर ग़ज़लें लिखी जिसने यहाँ वो
साहिबे ईजाद होते जा रहे हैं

बहुत बहुत बधाई इस अभिव्यक्ति पर |

Comment by Albela Khatri on June 2, 2012 at 1:13pm

kya baat hai

bahut khoob sandeep patel deep saheb


शारदा ने है दिया वरदान जिसको
"दीप" वो उस्ताद होते जा रहें हैं

jiyo jiyo...kya baat hai...badhaai

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