ये दिल मेरा अब इश्क के काबिल ही नहीं है
बिखरा है जो अब टूट के वो दिल ही नहीं है
हम जीते थे जिस शान से यारों के साथ में
वो छूटे हैं पीछे सभी महफ़िल ही नहीं है
गम हैं मेरा जो जान से मारेगा एक दिन
जो गम को डाले मार वो कातिल ही नहीं है
नादानी थी या भूल थी आशिक मैं बन गया
क्या आँखों को उसकी पढ़ें कामिल ही नहीं है
मैं डूबा था इस इश्क में पाने को कुछ सकूँ
गहरा है ये सागर बहुत साहिल ही नही है
है कैसा ये निजाम दीप लुट रहा हर सख्स
इतना मेरा कानून तो ग़ाफिल ही नहीं है !!!!!!
संदीप पटेल "दीप"
Comment
सदीप जी ,बहुत बढ़िया रचना ,लिखते रहे ,बधाई \
जय गुरुदेव
सादर नमन आपको आदरणीय Saurabh Pandey सर जी
आपकी प्रतिक्रया पा के मैं धन्य हो गया, एक विश्वास जागा कि हम भी कुछ लिख सकते हैं
इस उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार
ये स्नेह और आशीर्वाद यूँ ही बनाये रखिये
आपने अच्छी कोशिश की है, भाईजी. इस ग़ज़ल पर बधाई कुबूल करें.
आदरणीय Ganesh Jee "Bagi" सर जी सादर नमन
आपको ग़ज़ल पसंद आई इसका मतलब ये ग़ज़ल ही है
इसमें जो कमियाँ हों उन्हें भी उजागर करने की कृपा करें ताकि अगली बार और अच्छा प्रयास किया जा सके
आपका बहुत बहुत आभारी हूँ
अपने ये स्नेह बनाये रखिये
सादर नमन
आदरणीय सम्पादक महोदय जी सादर नमन
आपका आदेश सर आँखों पर
अब से यही कोशिश रहेगी
आपका आभारी
//गम हैं मेरा जो जान से मारेगा एक दिन
जो गम को डाले मार वो कातिल ही नहीं है//
सभी शेर अच्छे लगे, ग़ज़ल खुबसूरत है, बधाई हो संदीप जी |
है कैसा ये निजाम दीप लुट रहा हर सख्स
इतना मेरा कानून तो ग़ाफिल ही नहीं है
इसी गफलत में तो जीता रहा ता उम्र ऐ दोस्त
न आई हया उनको देखा उनकी आँख में पानी ही नहीं है
था जोश बहुत उनकी बाजुओं में लड़ने का तुफानो से
आया वक्त जब हिसाब का देखा उनमे जवानी ही नहीं है
बधाई .
संदीप जी, प्रयास करें कि टिप्पणी देवनागरी (हिंदी) में हो , देवनागरी लेखन हेतु टूल लिंक ओ बी ओ में दिया गया है, यदि रोमन लिखना ही पड़े तो Running लिखे अर्थात कैपिटल में ना लिखे ।
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