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सांसे जब तक चलती हैं

तब तक चलता है

सुख- दुःख का एहसास 

मान -अपमान की पीडाएं 

उंच -नीच , जात -पात  का भेद

सम्पन्नता -विपन्नता का आंकलन

नहीं मिलने मिलाने के उलाहने

प्रतियोगिता की अंधी दौड़

एक दुसरे को मिटा डालने का षड़यंत्र

सांसे जब तक टूटती हैं

उस क्षण को

ग्लानी से भरता है मन

और छोड़ देता है तन को

बची रह जाती है

उसकी कुछ यादें

अंततः कुछ भी नहीं बचता शेष

और फिर से शुरू हो जाती हैं

ये सारी प्रवंचनाएं

23july2008

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Comment by MAHIMA SHREE on August 2, 2013 at 10:57pm

आदरणीय अभिनव जी आपका ह्रदय तल से आभार .. रचना को पसंद करने और प्रोत्साहन देने के लिए सादर

Comment by Abhinav Arun on August 1, 2013 at 6:30pm

जीवन के वास्तविक पहलू को उजागर करती अभिव्यक्ति .. बहुत बधाई  और शुभकामनायें !!

Comment by shalini kaushik on September 14, 2012 at 1:54am

बहुत अच्छा लिखती हैं आप, औलाद की कुर्बानियां न यूँ दी गयी होती .

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 22, 2012 at 12:47am

धन्यवाद और आभार महिमा जी ,

दुआ है की आप का प्रशिक्षण अच्छी तरह से , सफलता से संपन्न हो और आप उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर अग्रसरित हों ...समय मिले  और फिर हम आप की कृतियाँ रोज पढ़ें  
जय श्री राधे 
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल "भ्रमर ५"  
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 9:16pm
हाँ महिमा जी परम शांति तो अंत में ही दिखती है जब साँसे साथ छोड़ जाती हैं ...बहुत सुन्दर रचना जिन्दगी के उतार चढाव  दर्शाती ...कौन बचा है इन प्रवंचनाओं से ..जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
Comment by आशीष यादव on June 5, 2012 at 8:52am

भावनात्मक रचना पर बधाई स्वीकार कीजिए। 

Comment by Albela Khatri on June 4, 2012 at 10:48pm

waah bahut khoob

bahut umda  mahima ji..........badhaai !

Comment by MAHIMA SHREE on June 4, 2012 at 10:10pm

आदरणीया रेखा जी .. आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by MAHIMA SHREE on June 4, 2012 at 10:09pm

चन्दन जी .. आपको रचना अच्छी लगी , शुक्रिया जनाब सहयोग बनाये रखे

Comment by MAHIMA SHREE on June 4, 2012 at 10:07pm

आदरणीय योगराज सर , सादर नमस्कार ,

आपके दो  अनमोल शब्दों ने इस रचना का मान बढ़ा दिया /  हौसला  अफजाई के लिए ह्रदय से आभार , स्नेह बनांये रखे , सधन्यवाद

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