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बिंदिया [लघु कथा ]

मीनू की डोली जब प्रशांत के घर के आगे रुकी तो दरवाजे पर पूजा की थाली लिए शिखा खड़ी थी | शिखा ने आगे बढ़ कर अपने प्यारे भैया प्रशांत और अपनी प्यारी सखी जो आज दुल्हन बनी ,भाभी के रूप में उसके सामने  खड़ी थी ,आरती उतार कर स्वागत किया |बर्तन में भरे हुए चावल को अपने पैर से बिखराते हुए ,पूरे रीति रिवाज के अनुसार मीनू ने अपने ससुराल में प्रवेश किया |पूरा घर खुशियों से चहक उठा ,शिखा ने मीनू को गले लगाते हुए कहा ,''आज तुम्हारा पांच साल से परवान चढ़ता हुआ प्रेम सफल हुआ ,मै जानती हूँ तुम और प्रशांत भैया दो जिस्म एक जान हो ,तुम एक दूसरेके बिना रह ही नही सकते ''|जल्दी ही मीनू अपने ससुराल में घुल मिल गई ,खासतौर से शिखा के साथ उसकी दोस्ती और भी गहरी हो गई |समय कब पंख लगा कर उड़ जाता है ,मालूम ही नही पड़ता ,दिन महीने और साल पर साल गुजरने का एहसास ही नही हुआ मीनू को ,फिर पता नही किसकी नजर लग गई और दबे पाँव अनहोनी ने उसकी प्यारी सी जिंदगी में दस्तक दे दी ,प्रशांत की एक कार दुर्घटना में मौत हो गई |मीनू की जिंदगी में घनघोर अँधेरा छा गया ,सारा सारा दिन प्रशांत की यादों में निकल जाता और राते तो कटने का नाम ही नही लेती ,रो रो कर आंसू भी सूख गये थे |शिखा भी अपने भाई को भूल नही पा रही थी ,जब भी वह मीनू को देखती उसकी आँखें मीनू के सूने माथे पर ही अटक  कर रह जाती ,जहाँ कभी दमकती  लाल रंग की बिंदिया मीनू की सुन्दरता की और भी निखार देती थी ,''नही नही ,मै मीनू की यूं घुट घुट कर जीने नही दूंगी ,उससे बात करनी ही होगी ,''और एक दिन उसने मीनू से दूसरी शादी की बात छेड़ दी , शिखा की बात सुन कर मीनू को जोर का झटका लगा ,तड़प उठी वह ,''शिखा  मै तुमसे बहुत प्यार करती हूँ ,तुम्हे उस प्यार की कसम ,जो आज के बाद तुमने यह बात दुबारा कही,तुम ही तो जानती हो कि तुम्हारे भैया से मै कितना प्यार करती हूँ ,किसी और के बारे में सोचना भी मेरे लिए पाप है ,चाहे वह आज  शारीरिक रूप से मेरे साथ नही ,लेकिन मै सिर्फ और सिर्फ प्रशांत की हूँ ,वह हर पल मेरे दिल में रहते है ,मै अपने से उनकी यादें दूर नही कर सकती |शिखा उसकी प्रिय सखी होने के नाते उसकी मनोदशा अच्छे से समझ रही थी ,''ठीक है मीनू ,मै तुम्हें समझ सकती हूँ ,लेकिन तुम्हे भी मेरी एक बात तो माननी ही होगी ,''शिखा ने मेज से बिंदियों का एक पत्ता उठाया और लाल रंग की एक बिंदी निकाल कर मीनू के सूने  माथे पर लगा दी ,''यह बिंदिया मेरे भैया के उस प्यार के लिए ,जिसे तुम अब भी महसूस करती हो |मीनू अवाक खड़ी देखती रह गई |

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Comment by Rekha Joshi on June 29, 2012 at 1:24pm

आदरणीय राज़ जी ,सादर 

उत्साहवर्धक कमेन्ट देने के लिए आपका शुक्रिया ,आगे भी स्नेह बनाये रखें 
Comment by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 12:43pm

जीवन पे अनावश्यक रूप से लादी गई प्रथाओं को तोडती एक ह्रदयस्पर्शी लघुकथा. सचमुच, जीवन के दुःख भरे अनुभवों की तस्वीर सजाके जीने की क्या ज़रूरत है? बधाई हो! 

Comment by Rekha Joshi on June 21, 2012 at 4:21pm

सुरेन्द्र जी ,जन्मदिन पर आपकी बधाई स्वीकार है ,आपने मुझे याद रखा ,आपका आभार 

Comment by Rekha Joshi on June 21, 2012 at 4:18pm

सूरज जी ,आपको रचना पसंद आई ,आपका शुक्रिया 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 20, 2012 at 11:13pm

बहुत मार्मिक कहानी है रेखा जी ! काश ऐसे परिवार वाले सभी के साथ ऐसा व्यवहार करे और प्यार का माहौल बने ! बधाई हो !!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 9:12pm
आदरणीया रेखा  जी जन्म दिन की अग्रिम रूप से बधाई ...ये खुशियों भरा पल बार बार आये ...आता रहे ...मुबारक हो प्रभु आप को सारी खुशियाँ और मन का सुकून दें ..आप यों ही समाज को रोशन करती रहें ...जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
Comment by Rekha Joshi on June 20, 2012 at 10:58am

आदरणीय सुरेन्द्र जी ,आपको कथा पसंद आई ,शुक्रिया ,आगे भी आप ऐसे ही उत्साह बढ़ाते रहें ,आभार ,

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 12:08am

आदरणीया रेखा जी भावनाओ के सागर  में गोता लगवा दिया आप ने ..अच्छी कहानी ...ऐसा भी होता है और सब कुछ बना भी रह सकता है 

भ्रमर ५ 
Comment by Shubhranshu Pandey on June 12, 2012 at 2:27pm

कितनी सरलता से एक बिन्दिया ने भावनाओं को सम्भाला.......

Comment by Rekha Joshi on June 10, 2012 at 11:50am

Kumar Gaurav ji protsahn ke liye dhnyvaad

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