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मानव न बन सका मनुज

यह कविता मेरे पापा की लिखी हुई है और मै इसे उनकी सहमती से पोस्ट कर रही हूँ |

मै ही तो एक नही हूं ऐसा,
मुझ से पहले भी लोग बड़े थे :
जिन को तो था संसार बदलना ,
अंधेरों में जो लोग खड़े थे :
उन लोगों में मेरी क्या गिनती ,
मुझ से तो वे सब बहुत बड़े थे :
खा कर भी हत्यारे की गोली ,
गांधी जी कितने मौन पड़े थे :
और अहिंसा हिंसा ने खाई ,
था नफरत ने ही प्यार मिटाया :
प्यार दिया इस जग को जिसने ही ,
क्रास पर गया था वह लटकाया :
पर मानव न बन सका मनुज अभी ,
पशुता उसकी उसके साथ रही |

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Comment

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Comment by Albela Khatri on June 4, 2012 at 10:39pm

क्या बात है रेखा जी.........
आपके पिताजी ने  कमाल की  कविता रची
ख़ूब ख़ूब अभिनन्दन !

ख़ासकर इन पंक्तियों में तो कलेजा निकाल कर रख दिया

प्यार दिया इस जग को जिसने ही ,
क्रास पर गया था वह लटकाया :
पर मानव न बन सका मनुज अभी ,
पशुता उसकी उसके साथ रही |


जय हो !

Comment by Rekha Joshi on June 4, 2012 at 9:22pm

AVINASH JI,sadar namaste ,aapka bahut bahut dhnyvaad meri aur mere papa ki trf se ,

Comment by AVINASH S BAGDE on June 4, 2012 at 7:38pm

पर मानव न बन सका मनुज अभी ,

पशुता उसकी उसके साथ रही |...papa ne sunder bhao ko piroya hai is rachana me...wah! rekha ji....
Comment by Rekha Joshi on June 4, 2012 at 6:53pm

लक्ष्मण जी ,मेरे पापा का नाम प्रो महेंद्र जोशी है ,मरी और मेरे पापा की तरफ से आप का धन्यवाद |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 4, 2012 at 6:32pm

apke pap ka nam kya hai, krapya avagat karave aur unhe thanks pay kare 

Comment by Rekha Joshi on June 4, 2012 at 6:12pm

प्रदीप जी ,योगी जी और राजेश जी ,मेरे पापा रिटायर्ड प्रोफसर है और बहुत ही अच्छे लेखक भी है ,उनकी और मेरी तरफ से आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by Rekha Joshi on June 4, 2012 at 6:07pm

उमाशंकर जी ,चंदन जी ,प्रभाकर जी ,मेरी और मेरे पापा की तरफ से आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद |

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 4, 2012 at 5:51pm

बढ़िया प्रस्तुति

पर मानव न बन सका मनुज अभी ,
पशुता उसकी उसके साथ रही | सार युक्त |
Comment by chandan rai on June 4, 2012 at 4:51pm
रेखा जी ,

प्यार दिया इस जग को जिसने ही ,
क्रास पर गया था वह लटकाया :
पर मानव न बन सका मनुज अभी ,
पशुता उसकी उसके साथ रही |
बहुत ही बेहतरीन विचारों से भरी पंक्तियाँ

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 4, 2012 at 4:34pm

अति सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकार करें रेखा जोशी जी .

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