For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

   यूँ कभी कभी मन में उठती है तरंग 
   बार-बार कहता कुछ विचलित मन 
   मस्तिष्क पटल पर छा जाते वो साज सभी 
   कानों में आती गुंजन की आवाज़ कभी 
   दिखती है आँखों में बिजली सी चमक कहीं 
   लगता है खोया गया सर्वस्व यहीं !

   देती है भाँवर सी फेरी वो कभी ख्यालों में मेरे 
   न जाने क्या पूंछा करती वो मुझसे साँझ सबेरे 
   बालों को लहरा के हवा आके छू जाती है मुझको 
   अपलक वो देखा करती पता नहीं क्यों खुद को 
   खिल गई कली चपला सी जड़ी 
   खो गई आसमा में समा सी खड़ी !

   गर खुदा जिद में है तो नाखुदा कैसे जुदा 
   हर लहर में खड़ा वो गर कश्ती में खुदा 
   माना उठा समंदर में कभी सैलाब ऐसा 
   खो गया हो कोई स्वर कामना के बाढ़ जैसा 
   चल पड़ा हो ज्वार भी गर नदी की धार में 
   छा गए हों बादल आसमा के पार में !

    तप रही है धरा तृषित जल की आस में 
    फंस गया है शून्य भी आज प्रेमपाश में 
    हो गया शीतल बदन ख्यालों में मिलन से 
    चल पड़ी है हवा खुशबू लिए अब चमन से 
    उठी है कोई तरंग दबा देती जो प्रभंजन 
    प्यास यूँ बुझती नहीं बिना लगे कोई अगन 
    
    है बात कैसी विदुर जो जले मिलके नयन 
    यूँ कभी शीतल हुई क्या सूर्य की तपन 
    टूटता तरु ख्यालों में फंस के लता के पाश में 
    उठी तब वेदना मधुर, मधु चाँद के आकाश में 
    छू लिए मधु प्याले को जब अधर मुस्कान से 
    चाँद से उतरी परी यूँ खेलती अनजान से !

    गुथ रही डाल-डाल किसलयों का हाल कैसा 
    हवा-दवा रूप से उठा सागर में ज्वार ऐसा 
    फूल में शूल में, शूल कोई फूल में 
    लोटता कोई अबोध हर तरफ धूल में 
    खेलता शीशे से भला कोई खिलौना बना 
    देखता रखता उठाता  थोबड़ा बौना बना !

    बांस की डंडी हो कोई छेद कर दो
    सरगम जैसे सारे स्वर भेद भर दो.
    छा गया मधुमास आज मधुर प्याले में 
    उठ रहीं काली घटायें जलधि के किनारे में.
    पकड़ को कोई लहर तुम समंदर की 
    बदली है फ़िज़ा आज मंदर की !

    खो गई तपस्विन धरा ऊँचे उच्छ्वास में 
    बह चला सावन सुना होशो हवास में 
    देखकर कोई देखा नहीं जो लड़ी जुड गई 
    स्वप्निल अनुराग से वो गुदगुदी कर गई 
    देखकर कोई पुकारा खो गया सारा जहाँ 
    कहाँ कोई चाँद कहाँ मधु प्याला यहाँ !

    मन अकिंचन फिर उसी मिथ्या मही में आ गया 
    कहाँ का प्रियपाश कहाँ स्नेह सारा खो गया
    फिर वही स्वप्निल धरा मुस्कराकर बोली ज़रा
    आ सावन पास मेरे कर पात पल्लव हरा !! 
    

Views: 476

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Raj Tomar on July 18, 2012 at 2:24pm

माननीया रेखा जोशी जी, हार्दिक आभार आपका.:)

Comment by Rekha Joshi on July 17, 2012 at 3:52pm

है बात कैसी विदुर जो जले मिलके नयन 
    यूँ कभी शीतल हुई क्या सूर्य की तपन 
    टूटता तरु ख्यालों में फंस के लता के पाश में 
    उठी तब वेदना मधुर, मधु चाँद के आकाश में 
    छू लिए मधु प्याले को जब अधर मुस्कान से 
    चाँद से उतरी परी यूँ खेलती अनजान से !,खूबसूरत रचना ,लिखते रहिये ,शुभकामनाएं  

Comment by Raj Tomar on July 16, 2012 at 9:56pm

बहुत बहुत धन्यवाद आपका आदरणीया राजेश कुमारी जी एवं श्रीमान अलबेला खत्री साब. :)

Comment by Albela Khatri on July 16, 2012 at 7:58pm

vistrit vishya par is  satik rachna ke liye badhaai !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2012 at 7:25pm

 मन अकिंचन फिर उसी मिथ्या मही में आ गया 
    कहाँ का प्रियपाश कहाँ स्नेह सारा खो गया 
    फिर वही स्वप्निल धरा मुस्कराकर बोली ज़रा 
    आ सावन पास मेरे कर पात पल्लव हरा !! इन पंक्तियों ने तो मन मोह लिया बहुत खूबसूरती से प्रक्रति का सौंदर्य वर्णन किया है इस सुन्दर प्रवाह युक्त कविता के लिए बधाई ,हां कही कहीं टंकण त्रुटी व्यवधान पैदा कर रही हैं उनको ठीक कर लें 
    

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion गीतिका छंद in the group भारतीय छंद विधान
"राम बोलो श्याम बोलो छंद होगा गीतिका। शैव बोलो शक्ति बोलो छंद ऐसी रीति का।। लोग बोलें आप बोलें छंद…"
15 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कुण्डलिया छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार। कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार। पाता है आकार, छंद शब्दों में…"
53 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion चौपाई : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"सोलह सोलह भार जमाते ।चौपाई का छंद बनाते।। त्रिकल त्रिकल का जोड़ मिलाते। दो कल चौकाल साथ बिठाते।। दो…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion रोला छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"आदरणीय सौरभ सर, रोला छंद विधान से एक बार फिर साक्षात्कार कर रहा हूं। पढ़कर रिवीजन हो गया। दोहा…"
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
22 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना आँखों को किसने सीखा है दिल से…See More
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service