For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धन से पत्थर पूजते ,मन में लेकर पाप 

ये आडम्बर देखकर ,निर्धन देगा श्राप 

निर्धन देगा श्राप ,उलट फल देगी पूजा 

दीन  धर्म से श्रेष्ठ , कर्म  ना कोई दूजा 

मन में रख सद्भाव ,करो सभी भक्ति मन से 

निर्धन  का हर  घाव , भरो  उसी शक्ति धन से 

********************************************

Views: 430

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 2, 2012 at 2:17pm

प्रिय अरुण प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2012 at 1:28pm

भावपूर्ण संदेशात्मक कुंडलियाँ, अति सुन्दर बधाई स्वीकारें आदरेया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 2, 2012 at 12:15pm

प्रिय सीमा जी आपका सुझाव सर आँखों पर परन्तु यदि मैं यह बदलाव करती हूँ तो अंतिम पंक्ति गड़बड़ा रही है क्यूंकि अंतिम पंक्ति मुझे ये लेनी थी उसी को ध्यान में देखते हुए ये पंक्ति लिखे थी श्राप को अशुद्ध मानते हैं तो ठीक कर लूंगी आपका हार्दिक आभार 

Comment by seema agrawal on December 2, 2012 at 11:23am

धन से पत्थर पूजते ,मन में लेकर पाप 

ये आडम्बर देखकर ,निर्धन देगा श्राप 

निर्धन देगा श्राप ,उलट फल देगी पूजा 

दीन  धर्म से श्रेष्ठ , कर्म  ना कोई दूजा .......बहुत सच्ची बात कह डाली प्रिय राजेश जी [आप मुझसे बड़ी हैं और मेरे लिए आदरणीय भी,  पर उससे भी ज्यादा आप मुझे बहुत प्रिय हैं इसलिए प्रिय लिख रही हूँ :) ]

अंतिम दो पंक्तियों में जो कमी मुझे लगी वो यह की मात्राएँ संतुलित होने के बावजूद भक्ति शब्द भक्ती पढ़ने में आ रहा है इसे यदि यूं संयोजित कर लिया जाये तो .......

मन में रख सद्भाव ,करो सभी भक्ति मन से //भक्ति करो सब ही मन से ( यह सिर्फ एक सुझाव है ,आप इससे बेहतर विकल्प भी सोच सकतीं हैं मुझे मालूम है )

एक बात और :श्राप अशुद्ध शब्द है शुद्ध शाप होता है 


आपकी रचना धर्मिता और सोच से हम सबको बहुत प्रेरणा मिलती है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 27, 2012 at 7:37pm
आदरणीय लक्ष्मण जी आपको कुंडलिया पसंद आई हार्दिक आभार 
 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 27, 2012 at 7:14pm

बहुत सुन्दर संदेशात्मक कुंडलियों के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
14 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
18 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service