रवि किरणों को कंटक सम चुभता
नोच डाला गिद्धों ने जो गिरी का बदन
करते हैं दोहन उसकी भुजाओं का
कैसे दिखाए नदी शिव को अपना वदन
जब चाहा संहार किया काटी ग्रीवा
आज चुपचाप बिलखते हैं अरण्य सघन
मासूम गंगा की छीन ली पावनता
बहाते गन्दगी धुलते मैले कुचैले वसन
शून्य धरा शून्य अम्बर बचा क्या
प्रदूषित जल ,पर्यावरण , प्रदूषित पवन
क्या दोगे धरोहर अगली पीढ़ी को
कुछ तो बचा लो ,सुनो क्या कहे अंतर्मन
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Comment
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी हार्दिक आभार आपका |
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी रचना पसंद करने हेतु हार्दिक आभार आपका
इस आर्त पुकार पर हार्दिक बधाई.
पावन सरिता गंगा कि होती दुर्दशा पर चिंता प्रकट करती रचना पर बधाई स्वीकारें आद. राजेश कुमारी जी.सादर.
अन्वेषा जी हार्दिक आभार आपकी अनमोल टिपण्णी हेतु
Shabdheen...........
आदरणीय डॉ .सूर्या बाली जी आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए दिल से शुक्रिया
राजेश कुमारी जी नमस्कार बहुत सुंदर रचना....बेहद संजीदा और साहित्यिक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें।
खास कर ये पंक्तियाँ बहुत उम्दा हैं....
प्रदूषित जल ,पर्यावरण , प्रदूषित पवन
क्या दोगे धरोहर अगली पीढ़ी को ...
प्रिय प्राची जी मेरी रचना पर आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया मेरी कलम में मानो उर्जा की तरंगे लेकर आई हैं उत्साह वर्धन हेतु दिल से आभार
बहुत बहुत बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी, पर्यावरण की दिन प्रति दिन प्रदूषित होती स्थिति को इतनी संवेदनशीलता के साथ इस काव्य में समेटने के लिए....काश सबका अंतर्मन यह ज़रूर सुने..की पृथ्वी जो हमें जीवन देती है, उसको हमने इस लायक भी नहीं छोड़ा की वो हमारे आगे आनी वाली पीड़ीयों को भी यूं ही सम्हाल सके.... जल वायु धरती सब बिलख रहे है..
इस संवेदनशील सन्देश हेतु पुनः बधाई
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