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धन से पत्थर पूजते ,मन में लेकर पाप 

ये आडम्बर देखकर ,निर्धन देगा श्राप 

निर्धन देगा श्राप ,उलट फल देगी पूजा 

दीन  धर्म से श्रेष्ठ , कर्म  ना कोई दूजा 

मन में रख सद्भाव ,करो सभी भक्ति मन से 

निर्धन  का हर  घाव , भरो  उसी शक्ति धन से 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 2, 2012 at 2:17pm

प्रिय अरुण प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2012 at 1:28pm

भावपूर्ण संदेशात्मक कुंडलियाँ, अति सुन्दर बधाई स्वीकारें आदरेया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 2, 2012 at 12:15pm

प्रिय सीमा जी आपका सुझाव सर आँखों पर परन्तु यदि मैं यह बदलाव करती हूँ तो अंतिम पंक्ति गड़बड़ा रही है क्यूंकि अंतिम पंक्ति मुझे ये लेनी थी उसी को ध्यान में देखते हुए ये पंक्ति लिखे थी श्राप को अशुद्ध मानते हैं तो ठीक कर लूंगी आपका हार्दिक आभार 

Comment by seema agrawal on December 2, 2012 at 11:23am

धन से पत्थर पूजते ,मन में लेकर पाप 

ये आडम्बर देखकर ,निर्धन देगा श्राप 

निर्धन देगा श्राप ,उलट फल देगी पूजा 

दीन  धर्म से श्रेष्ठ , कर्म  ना कोई दूजा .......बहुत सच्ची बात कह डाली प्रिय राजेश जी [आप मुझसे बड़ी हैं और मेरे लिए आदरणीय भी,  पर उससे भी ज्यादा आप मुझे बहुत प्रिय हैं इसलिए प्रिय लिख रही हूँ :) ]

अंतिम दो पंक्तियों में जो कमी मुझे लगी वो यह की मात्राएँ संतुलित होने के बावजूद भक्ति शब्द भक्ती पढ़ने में आ रहा है इसे यदि यूं संयोजित कर लिया जाये तो .......

मन में रख सद्भाव ,करो सभी भक्ति मन से //भक्ति करो सब ही मन से ( यह सिर्फ एक सुझाव है ,आप इससे बेहतर विकल्प भी सोच सकतीं हैं मुझे मालूम है )

एक बात और :श्राप अशुद्ध शब्द है शुद्ध शाप होता है 


आपकी रचना धर्मिता और सोच से हम सबको बहुत प्रेरणा मिलती है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 27, 2012 at 7:37pm
आदरणीय लक्ष्मण जी आपको कुंडलिया पसंद आई हार्दिक आभार 
 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 27, 2012 at 7:14pm

बहुत सुन्दर संदेशात्मक कुंडलियों के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे 

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