धन से पत्थर पूजते ,मन में लेकर पाप
ये आडम्बर देखकर ,निर्धन देगा श्राप
निर्धन देगा श्राप ,उलट फल देगी पूजा
दीन धर्म से श्रेष्ठ , कर्म ना कोई दूजा
मन में रख सद्भाव ,करो सभी भक्ति मन से
निर्धन का हर घाव , भरो उसी शक्ति धन से
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Comment
प्रिय अरुण प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार
भावपूर्ण संदेशात्मक कुंडलियाँ, अति सुन्दर बधाई स्वीकारें आदरेया
प्रिय सीमा जी आपका सुझाव सर आँखों पर परन्तु यदि मैं यह बदलाव करती हूँ तो अंतिम पंक्ति गड़बड़ा रही है क्यूंकि अंतिम पंक्ति मुझे ये लेनी थी उसी को ध्यान में देखते हुए ये पंक्ति लिखे थी श्राप को अशुद्ध मानते हैं तो ठीक कर लूंगी आपका हार्दिक आभार
धन से पत्थर पूजते ,मन में लेकर पाप
ये आडम्बर देखकर ,निर्धन देगा श्राप
निर्धन देगा श्राप ,उलट फल देगी पूजा
दीन धर्म से श्रेष्ठ , कर्म ना कोई दूजा .......बहुत सच्ची बात कह डाली प्रिय राजेश जी [आप मुझसे बड़ी हैं और मेरे लिए आदरणीय भी, पर उससे भी ज्यादा आप मुझे बहुत प्रिय हैं इसलिए प्रिय लिख रही हूँ :) ]
अंतिम दो पंक्तियों में जो कमी मुझे लगी वो यह की मात्राएँ संतुलित होने के बावजूद भक्ति शब्द भक्ती पढ़ने में आ रहा है इसे यदि यूं संयोजित कर लिया जाये तो .......
मन में रख सद्भाव ,करो सभी भक्ति मन से //भक्ति करो सब ही मन से ( यह सिर्फ एक सुझाव है ,आप इससे बेहतर विकल्प भी सोच सकतीं हैं मुझे मालूम है )
एक बात और :श्राप अशुद्ध शब्द है शुद्ध शाप होता है
आपकी रचना धर्मिता और सोच से हम सबको बहुत प्रेरणा मिलती है
बहुत सुन्दर संदेशात्मक कुंडलियों के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे
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