For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनुपम अद्दभुत कलाकृति है या द्रष्टि का छलावरण
जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं द्रग और अंतःकरण
त्रण-त्रण चैतन्य औ चित्ताकर्षक रंगों का ज़खीरा
पहना सतरंगी वसन शिखर को कहाँ छुपा चितेरा
शीर्ष पर बरसते हैं रजत,कभी स्वर्णिम रुपहले कण
जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं आँखें और अंतःकरण
कहीं धूप की चुनरी पर ,बदरी का बूटा गहरा गहरा
कहीं वधु ने घूंघट खोला कहीं छुपाया रूप सुनहरा
किसने है ये जाल बनाया,कौन है बुनकर विचक्षण
जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं आँखें और अंतःकरण
शीत ऋतू में मुकुट पर चाँदी की छतरी का घेरा
बिखरे बिखरे रुई के गोले धुंध में लिपटा सवेरा
निश दिन भरता नव्य रूप छुप कर करता नयन हरण
जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं आँखें और अंतःकरण
*********************************************

Views: 605

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 20, 2012 at 4:52pm

आदरणीय प्रदीप कुमार जी आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई हार्दिक आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 20, 2012 at 4:13pm

कहीं धूप की चुनरी पर ,बदरी का बूटा गहरा गहरा
कहीं वधु ने घूंघट खोला कहीं छुपाया रूप सुनहरा

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.

आदरणीया राजेश कुमारी जी, 

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 19, 2012 at 10:53am

पोस्ट फीचर करने हेतु हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 17, 2012 at 7:51pm

आदरणीय  लक्ष्मण लडिवाला जी हार्दिक आभार आपका 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 17, 2012 at 7:14pm

हिम सौन्दर्य देख विस्मयाभिभूत किया सुन्दर वर्णन                                                                                                पढ़कर जिसको विस्मयाभिभूत मन में हुआ आकर्षण ।

प्रकति का ऐसे सुन्दर वर्णन -बधाई आदरणीया राजेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 17, 2012 at 4:08pm

प्रिय संदीप आपको रचना पसंद आई आपकी प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभारी हूँ

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 17, 2012 at 4:01pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
बहुत सुन्दर बिम्ब लिए हुए आपकी ये रचना बाकई हिम के सौन्दर्य को परिभाषित करती है
बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 17, 2012 at 2:18pm

अजय जी सराहना हेतु हार्दिक आभार आपका 

Comment by Dr.Ajay Khare on December 17, 2012 at 2:11pm

aap ki hindi samajh ki me daad deta hu jitna samjh paya sunder he badhai


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 17, 2012 at 2:02pm

स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु प्रिय सुमन मिश्र हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएं 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
8 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
22 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service