लिखी गई फिर पल्लव पर नाखून से कहानियां
खिलखिलाई गुलशन में नृशंसता की निशानियां
छिपे शिकारी जाल बिछाकर ,चाल समझ में आई
उड़ती चिड़िया ने नभ से न आने की कसमें खाई
बिछी नागफनी देख बदरिया मन ही मन घबराई
गर्भ से निकली ज्यों ही बूँदे, झट उर से चिपकाई
सकुचाई ,फड़फडाई तितली देख देख ये सोचे
कहाँ छिपाऊं पंख मैं अपने कौन कहाँ कब नोचे
देख सामाजिक ढांचा आज हर मादा शर्मिंदा है
एक सवाल अपने अस्तित्व से, री तू क्यूँ जिन्दा है ??
****************************************************
Comment
सुरेन्द्र कुमार भ्रमर जी हार्दिक आभार रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देने हेतु ,बस यही इन्तजार है की न्याय हो और ऐसा कभी दुबारा ना हो
सकुचाई ,फड़फडाई तितली देख देख ये सोचे
कहाँ छिपाऊं पंख मैं अपने कौन कहाँ कब नोचे
आदरणीया राजेश कुमारी जी मर्माहत करने वाली घटनाएँ हर तरफ चिंता शोक कुशल क्षेम की दुवाएं अत्याचारी जल्द मिटें यही कामना ....बहुत सुन्दर रचना समाज को जागना होगा ....बुलबुल उड़ें गीत गायें परियां आयें स्वागत करना है ...
आदरणीय अशोक रक्ताले जी आपका हार्दिक आभार रचना के मर्म ने दिल को छुआ
आदरेया राजेश कुमारी जी सादर, बहुत सुन्दर एक हृदयविदारक रचना. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीय विजय निकोरे जी आज देश में हर कोई शर्मसार है हर दिल की एक ही पुकार है फांसी ,पर हमारी सरकार कब जागेगी यही देख रहे हैं हम भी और आप भी
प्रिय महिमा जी आवाज में आवाज मिलाने के लिए हार्दिक आभार
आदरणीया राजेश कुमारी जी:
दिल्ली में हुए कुकर्म से मन उदास रहा, कि जैसे गला रुँध गया हो।
मेरी भावनाओं को आपकी कविता ने आवाज़ दे दी .. इसके लिए
आपका धन्यवाद, और अच्छी कविता के लिए बधाई।
यह पीड़ा हम सभी की पीड़ा है।
सादर,
विजय निकोर
एक सवाल अपने अस्तित्व से, री तू क्यूँ जिन्दा है ??..
आदरणीया राजेश दी .आपकी संवेदनाओ को नमन !!!!
कभी कभी मौन ही सब कुछ कह देता है सीमा जी हम सभी कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं हैं ,अभी अभी मन का आक्रोश बाहर निकाल कर आ रही हूँ उत्तराखंड महिला एसोसिएशन के मार्च प्रदर्शन(डेल्ही रेप केस के विरुद्ध) में जाकर आई हूँ फेस बुक पर फोटोज डाल दिए हैं। हार्दिक आभार आपका ।
बहुत कुछ कहा जाचुका है इस विषय में इसलिए शांत रहते हुए बस यही कहूंगी ..... मन को छू गयी रचना आपकी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online