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प्रतिभा (लघु कथा )/डॉ. प्राची

“हैलो क्षिप्रा, कैसी हो? मैं निशा बोल रही हूँ, मॉडर्न स्कूल की प्रिंसिपल! आज सभी स्कूलों के लिए आयोजित पोस्टर कम्पीटीशन में तुम जज हो न?”

ओहो! निशा! कैसी हो? कितने समय बाद याद किया? क्या तुम भी आ रही हो?क्षिप्रा नें पूछा.

“मेरे स्कूल के बच्चे प्रतिभागिता कर रहे हैं , बच्चों को मोटिवेट करने के लिए आना तो चाहती हूँ, पर मेरे स्कूल में भी एक समारोह है, अब देखो! अच्छा तुम कितने बजे तक पहुँचोगी?”निशा नें पूछा .

“मैं ग्यारह बजे तक पहुचूंगी, आ सको तो आना, मिलते हैं फिर.” क्षिप्रा बोली.

क्षिप्रा आयोजन स्थल में पहुचती है.

बच्चे रंग कूची कलम लेकर लगे है पूरी तन्मयता के साथ प्रदत्त विषय सन्निहित सतरंगी भावों को कोरे कागज पर उकेर देने के लिए. एक से बढ़ कर एक पोस्टर, किसी के भाव बेहतरीन तो किसी के रंग, किसी का सन्देश सुप्त विचारों को जगाता हुआ, तो कोई यथार्थता का सत्य बिम्ब. बच्चों की सोच कागज में कितने सच्चे खूबसूरत रंग ले कर उतरी थी, बस देखते ही बनता था, हर चित्र पर बस वाह!

छोटे बच्चों की अलग कैटेगरी- नन्हे नन्हे हाथ रंगीन मासूम सपनों की तितलियाँ कोरे कागज़ पर सजाते हुए . जीत हार की होड़ नहीं, बस पूरी लगन ,जोश, तन्मयता से रंगों की दुनिया में लीन,रंगों से बाते करते, सपनों से खेलते , निष्प्राण कागज़ में पूरी निष्ठा से विषयजन्य प्राण फूंकते.

क्षिप्रा का मोबाईल फिर बजा!

“हाँ! क्षिप्रा, तुम पहुँच गयी “

“हाँ!, मैं अन्दर ही हूँ निशा, तुम भी आ गयी क्या?”

“नहीं मैं तो नही आ पायी, पर मेरे स्कूल का एक बच्चा है, अरुण, बहुत प्रतिभाशाली है,उसने भाग लिया है, पता नहीं प्रतियोगिता में कैसा करे, पर है बहुत टैलेंटेड. तुम ज़रा देख ज़रूर लेना, ठीक है” निशा ने कहा. 

क्षिप्रा मुस्कुराई, और बच्चों के पोस्टरों की तरफ देख कर सोचा, शुक्र है, बच्चो के नाम और उनके स्कूल के नाम पोस्टर के पीछे लिखे हैं, और मैं उन्हें देख नहीं सकती.....और कागज़ कलम ले कर आगे बढ़ गयी,रंगों की सच्ची भाषा को आंकने.

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 3, 2012 at 9:44pm

आदरणीय डॉ.  सूर्या बाली जी, आपको  यह  कथा पसंद आयी यह मेरे लिए संतोष की बात है, इस हेतु आपका हार्दिक आभार.

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 3, 2012 at 8:44pm

प्राची जी बहुत ही सुंदर लघु कथा। आज समाज में बिना किसी दबाव और बिना किसी  पूर्वाग्रह के अपना कर्तव्य निभाना ही सच्ची  सेवा है।  संवेदनशीलता और कर्तव्यनिष्टा को दर्साती हुई लघु कथा के लिए बहुत बहुत बधाई॥ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 3, 2012 at 8:10pm

आदरणीय सौरभ जी,

इस लघुकथा की सकारात्मक वैचारिकता के विश्लेषण और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 3, 2012 at 6:47pm

या तो ’उन’ प्राध्यापिका महोदया को शिशुओं से सम्बन्धित आयोजन दिखावा लगता है, या इस तरह के आयोजनों को व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से जोड़ रखा है. क्षिप्रा द्वारा प्रिंसपल निशा के टेलिफोनिक दवाब को सिरे ख़ारिज़ कर स्वयं को निर्णय के प्रति निस्पृह रखना ही इस लघुकथा का प्राण है.

इस सकारात्मक लघुकथा के लिए डॉ.प्राची आपको हार्दिक बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 3, 2012 at 3:18pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी,

हार्दिक आभार , आपने  इस लघुकथा के सन्देश को सराहा. 

यहाँ परीक्षक अपने दायित्व को पूर्ण ईमानदारी से  निभाएं यह तो ज़रूरी है ही, जो एक बात और मैं उजागर करना चाहती थी वो ये कि, प्रिंसिपल जिस पर निष्पक्ष ज्ञान की नींव हृदयों में स्थापित करने का दायित्व होता है, वो भी इतने निर्लज्ज हो रहे हैं कि अपने विद्यालय ले नाम के लिए वो अपनी व्यक्तिगत छवि को अपने ही हाथों कलंकित करते हैं , उन्हें यह भान तक नहीं होता. 

ऐसी वैचारिकता और संस्कार अपने हृदयों में रख कर वो शिक्षार्थियों के लिए कैसे उदाहरण बनते होंगे,  उन्हें विद्यालय में क्या संस्कार देते होंगे ...यह भी शोचनीय है. 

शायद आप भी सहमत होंगी. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2012 at 2:33pm

इस कहानी के माध्यम से बहुत सुन्दर सन्देश दिया है प्रिय प्राची शिप्रा जैसे परीक्षक बहुत कम देखने को मिलते हैं जो अपनेउत्तरदायित्व के साथ धोखा नहीं करते यदि ये सोच सभी के मन में हो कि  प्रतिभा को पूर्ण सम्मान मिलना चाहिए तो हमारे देश की तस्वीर ही कुछ अलग हो ऐसे कई मौके आये मेरी जिन्दगी में भी पर मैंने अपनी जिम्मेदारी समझी थोपे गए हालात से समझौता नहीं किया ..बहुत बहुत बधाई इस उत्कृष्ट कहानी हेतु 

Comment by रविकर on December 3, 2012 at 12:23pm

निर्णय करना कठिन कार्य-
आभार आदरेया ||


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 3, 2012 at 11:55am

प्रिय पियूष जी, आपका आभार, आपने इस लघुकथा के भावों को पसंद किया.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 3, 2012 at 11:53am

हार्दिक आभार आदरणीय वीनस जी, आपको यह कथा, विशेषकर सकारात्मक अंत पसंद आया यह जान कर लेखन को ऊर्जा मिली है. सादर धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 3, 2012 at 11:52am

आदरणीय अरुण कुमार निगम जी, लघुकथा के सन्देश को आपका अनुमोदन मिला, इस हेतु आभारी हूँ सादर.

कृपया ध्यान दे...

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