For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीतने के सौ तरीके खोजने वाले,
ग्लूकान-डी के सहारे
सूरज से लड़ने वाले हम इंसान
उजले सच को भी बर्दाशत नहीं कर पाते

प्रकृति पर विजय की लालसा लिए,
हम इंसान
पर्वत विजय का जश्न मनाते हैं,
इंगलिश चैनल को तैर कर पार करते हैं,
भू-गर्भ की गहराइयों को 'मीटर' में नापते हैं, 
'मीटर' के ऊपर के सारे पैमाने जाने कहाँ चले जाते हैं उस समय !!!

चाहते हैं,
चाँद पर खेती करें,
मंगल पर पानी मिल जाए,
नए तारों की खोज में ,
हमने टेलीस्कोपिक मीनारें खड़ी कर दीं

मगर
जब हम हारने लगते हैं
तो दुहाई देते हैं
हम भूल जाते हैं कि हमने ही बनाए थे नदियों पर बाँध
चढाते हैं बकरे की बली
मनाते हैं मनौती

विनती करते हैं
रचते हैं नकली श्रद्धा का खूबसूरत नाटक
प्रार्थनाओं का दौर चलता है,
"माँ" हम सब अपकी संतान हैं .......

हम इंसान,,, दोगले हैं !!!

 

Views: 522

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 14, 2013 at 1:08pm

सत्य चाहे जो हो, ये भी अच्छा है कभी कभी हम खुद को भी कोस लें. सुन्दर रचना आदरणीय वीनस जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on April 14, 2013 at 9:36am

आदरणीय वीनस जी, सत्य को उजागर कर दिया. लूटनेवाला लुटने के डर से शरणागत होता है. मांगते समय इतना भी नहीं सोचता है कि जो कुछ वह मांग रहा है, क्या वैसा ही कुछ लुटा रहा है ? सटीक रचना के लिए बधाई....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 13, 2013 at 10:28pm

आ० वीनस जी 

सच को मुखरता से कहती... तीक्ष अभिव्यक्ति 

धरती पर प्रकृति के हर तत्व को नित ज़िंदगी के प्रतिकूल बनाता ...मनुष्य अन्य ग्रहों पर जीवन तलाशता फिरता है....?

ये दोगलापन ही तो है...

इस प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2013 at 7:20pm

एक दम अलग सी रचना प्रस्तुत की है वीनस जी सच में इंसान दोगला है इसमें कोई दो राय नहीं प्रकृति  से खिलवाड़ भी करता है उसके दुश्परिणामों पर या तो खुद को या खुदा  को कोसता है इस शानदार प्रस्तुति हेतु बधाई |

Comment by Vindu Babu on April 13, 2013 at 9:29am
आपने तो यथार्थ दर्शन करा दिया आदरणीय वीनस जी। आज का दौर यही हो गया है कि हम कृत्रिम संसाधनों से पौरुष बटोरना चाहते हैं।
प्रशंसनीय रचनात्मकता के लिए सादर बधाई स्वीकारें।
Comment by वीनस केसरी on April 13, 2013 at 12:09am

विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय,
पसंदगी के लिए आभार

निदा फाजली के एक शेर से अपनी बात कहूँगा कि,

हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिसको भी देखना हो कई बार देखना...

वैसे पिछले दिनों जो रचनाएँ पोस्ट की हैं वो २००९ से २०११ के दरमियाँ लिखी थी
सादर

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 1:35pm

आदरणीय वीनस सर जी सादर
क्या ही खूबसूरती के साथ सच को साझा किया है आपने
इंसानी हक़ीकत इससे परे क्या है
आज श्रद्धा के नाम पर चल रहे ढकोसलो के मुँह पर करारा तमाचा जड़ा है आपने
और याद भी दिलाया है के तुम क्या हो
तुममे क्या क्षमता है
तुम क्या कर सकते हो
क्या कर चुके हो
पर ये इंसान है ग़लती और हार इसके दो ही पहलू हैं
जिन्हे ये दुर्भाग्य मानता है
उसके लिए क्या कीजे
जय हो
बेहतरीन रचना के लिए बहुत बहुत बधाई हो

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 12, 2013 at 1:24pm
आदरणीय वीनस सर जी! एक गजल गो अतुकांत कविता की तरफ कैसे उन्मुख हो गया? फिल्हाल इसांनों की सच्चाई से रूबरू कराती खूबसूरत रचना के लिये आपको भूरिश: बधाई।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 12, 2013 at 12:17pm

आ0 वीनस केसरी जी, ’विनती करते हैं
रचते हैं नकली श्रद्धा का खूबसूरत नाटक
प्रार्थनाओं का दौर चलता है,
’माँ’ हम सब अपकी संतान हैं’। ...बहुत, बहुत ही सुन्दर । हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 12, 2013 at 9:22am

खुबसूरत रचना हां हम इंसान है दोगले है - हार्दिक बधाई श्री वीनस केसरी जय 

आपने मुहं मिया मिट्ठू बनते मोहल्ले है,

परीक्षा से पता लगता  कितने खोखले है 

फिर भी वाह वाह करते ये सब चोचले है |- 

परम्परा निभाते देखो कितने होंसले है - नव संवत्सर कि हार्दिक शुभ कामनाए वीनस भाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service