For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिन्दी गजल...

 

गर्मियों की शान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

धूप में वरदान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

हर पथिक हारा थका, पाता यहाँ विश्राम है,

भेद से अंजान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

नीम, पीपल, हो या वट, रखते हरा संसार को,

मोहिनी,  मृदु-गान  है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

हाँफते विहगों की प्यारी, नीड़ इनकी डालियाँ,

और इनकी जान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

रुख बदलती है मगर, रूठे नहीं मुख मोड़कर,

सृष्टि का अनुदान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

जो न साधन जोड़ पाते, वे शरण पाते यहाँ,

दीन का भगवान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

हे मनुष मिटने न दो, जीवन के अनुपम स्रोत को,

गूढ यह विज्ञान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

----कल्पना रामानी   

Views: 1093

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on May 3, 2013 at 6:53pm

रचना को अपना स्नेह देने के लिए हार्दिक आभार प्रदीप जी

सादर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 3, 2013 at 4:53pm

हे मनुष मिटने न दो, जीवन के अनुपम स्रोत को,

गूढ यह विज्ञान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 सुन्दर आवाहन 

सादर बधाई. 

Comment by कल्पना रामानी on April 26, 2013 at 5:34pm

आदरणीय सौरभ जी, आपने इतने विस्तार से दोनों शब्दों का अंतर स्पष्ट किया है, आगे अवश्य ध्यान रखूंगी। भूल सुधार भी कर दिया है। बाकी स और श को तो समांत कोई नहीं मानता। आपकी रचना मैंने पढ़ ली, बहुत सुंदर है। मैं भी इस तरह कुछ दोहों में स और श का प्रयोग कर चुकी हूँ लेकिन टिप्पणी होने के बाद ठीक करती जा रही हूँ। एक बात और पूछनी है आपसे कि सुधार की हुई रचनाएँ पुरस्कार योजनाओं में शामिल होती हैं या नहीं?...सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 26, 2013 at 11:37am

आदरणीया कल्पना जी, सही कहूँ तो मेरा मन आपके प्रति अपार आदर से भर गया है. जिस श्रद्धानुनत ताकत से आपने स्वयं को अभिव्यक्त किया है वह सामान्य हृदय के बस की बात तो कभी नहीं है. आपका साहित्यानुराग अप्रतिम है, आदरणीया. आपसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं. और, यह हमारा सौभाग्य है कि आप जैसी स्वयंसमृद्ध विदुषी से हमारा परिचय हुआ है. आप जैसी साहित्यानुरागियों का किसी मंच पर होना उस मंच के वैचारिकतः सुदृढ़ होते जाने का द्योतक है. 

//दोहे और कुण्डलिया छंद में न और ण को समांत बताया गया।//

आदरणीया, तथा को कई स्थानों समांत में लेते हैं.  जबकि वास्तविकता यह है कि वर्ग और उच्चारण दोनों के हिसाब से ये दोनों अक्षर निहायत भिन्न अक्षर हैं.  यह अवश्य है कि शब्दों के आंचलिक स्वरूप में अक्सर की तरह व्यवहृत होता है. तो ऐसा लिखा भी जाता है. जैसे, प्राण को प्रान या बाण को बान लिख लेते हैं. लेकिन खड़ी हिन्दी में प्रान या बान लिखना अशुद्ध अक्षरी माना जायेगा.

आप विश्वास करें, आदरणीया कल्पनाजी, और तक के समांत या बनते तुकांत पर प्रश्न उठाया गया है. मेरी ही रचना पर उठाया गया है. जबकि आप भी इतने दिनों के रचनाकर्म के लिहाज से जानती होंगी कि को उच्चारण और व्यवहार के लिहाज से छोड़ भी दें तो तथा की तुकांतता इतनी चौंकाने वाली नहीं होती कि उसपर इतनी बहस होने लगे कि प्रस्तुत हुई रचना ही हाशिये पर चली जाये. सर्वोपरि, इस तरह का कोई इतिहास भी नहीं है कि और के तुकांत शब्द ख़ारिज हो जाते हैं. लेकिन ऐसा हुआ है. खूब बहस हुई है. कारण चाहे जो हो. उस रचना का लिंक सादर प्रस्तुत है. 

http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:305260

इसी बहस के बाद से, आदरणीया, हमने स्वयं पर भी अंकुश लगाया है कि और तक की तुकांतता पर भी संवेदनशील रहूँगा.

लेकिन मेरा सादर निवेदन है कि तथा को हम भिन्न ही मानें.

अपनी परस्पर बातचीत या ससंदर्भ संवाद अपने मानसिक उन्नयन का ही सार्थक विस्तार हो, इसी अपेक्षा के साथ.

सादर

Comment by कल्पना रामानी on April 26, 2013 at 11:02am

आदरणीय विनय जी, आपका सुझाव बेहतर है, मैं रचना के सुधार के साथ यह शब्द भी बदल दूँगी। आपका हृदय से आभार...

Comment by कल्पना रामानी on April 26, 2013 at 11:00am

आदरणीय सौरभ जी, मैं यह तो स्पष्ट कर ही चुकी हूँ कि मेरा शिल्प ज्ञान, शब्द ज्ञान कमजोर है, शिक्षा हाईस्कूल तक हुई है  हिन्दी का ज्ञान भी मातृभाषा 'सिन्धी' होने के कारण खड़ी बोली के सीमित शब्दों तक ही है। क्षेत्रीय भाषाओं का कोई ज्ञान नहीं है। लेखन से सिर्फ इत्तफाक से इसी दशक से ही जुड़ी हूँ। मैं कंप्यूटर हाथ में लेने के साथ ही जिस समूह(अभिव्यक्ति) से जुड़ी और सीखना शुरू किया, वहीं जो बताया गया ध्यान में रखती गई। दोहे और कुण्डलिया छंद में न और ण को समांत बताया गया। जिसके आधार पर अनेक रचनाओं में प्रयोग किया। अब यदि आप कहते हैं और यह सर्व मान्य मत है तो यह मेरे लिए भी  मान्य होगा। इस रचना को ठीक करने की कोशिश करूंगी। विद्वानों की अलग अलग राय से भी हम भ्रमित हो जाते हैं। मैं निर्दोष लेखन को हीमहत्व देती हूँ। आपका सहयोग मिलता रहेगा तो अभ्यास के साथ अनुभव भी बढ़ता जाएगा। आपका हार्दिक धन्यवाद...   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 26, 2013 at 1:21am

वाह !

वृक्ष को हम मात्र वृक्ष कहाँ कहते हैं ? इसका अश्वत्थ ही नहीं कोई स्वरूप हो हमारी संस्कृति का मूर्धन्य भाग है.

आपकी ग़ज़ल से क्या गुजरा, चैत की रात में नई कोंपलों से गदबदाये पेड़ के नीचे झुलही चारपायी में धँसे निरभ्र गगन के तारों को निहारने के मनोहारी अनुभव को जीता गया. आदरणीया,  ग़ज़ल के सभी अश’आर सुखद हैं.  हार्दिक बधाई.. .

एक बात :

काफ़िया निर्धारण में हर्फ़ों की पवित्रता पर विशेष ज़ोर रहता है. हम उसे हिन्दी वर्णमाला के अनुसार तो बरत ही सकते हैं. उस हिसाब से टवर्ग के और तवर्ग के को साथ लेकर काफ़िया निर्धारण मुझे बहुत संतुष्ट नहीं कर पाया.

यह आवाज़ और आज का अंतर या साम्य नहीं है, आदरणीया, बल्कि वर्णमाला के भिन्न वर्ग के भिन्न अक्षर का साम्य बन रहा है. देखियेगा, क्या मैं गलत हूँ ?! 

सादर

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 23, 2013 at 11:17am
आदरणीय कल्पना रमानी जी! बहुत ही सुन्दर गजल कही है आपने। भूरश: बधाई।
एक निवेदन है कि अंतिम शेर में क्या /मनुष/ की जगह /मनुज/ ठीक रहेगा?
Comment by कल्पना रामानी on April 22, 2013 at 9:54pm

आदरणीय अभिनव अरुण जी, प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by Abhinav Arun on April 20, 2013 at 8:46am

नीम, पीपल, हो या वट, रखते हरा संसार को,

भूमि पर वरदान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

एक अरसे बाद इस कदर ताजगी और सादगी से तर ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ आदरणीया कल्पना रामानी जी ! आपकी भाषा और सोच गत मौलिकता में खिंचाव है , गहराई है , बहुत बहुत शुभकामनाये और बधाई दुपहरी में शीतलता का एहसास कराती इस ग़ज़ल के लिए !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service