For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पहेली है ये जिंदगी ......

क्या है - जिंदगी ,

संध्या है या प्रभात,

शीत है या उष्ण,

सूरज की लाली या चांदनी है चाँद की ,

आदि है या अंत 

स्वप्न है या चैतन्य ,

सुख है या दुःख ,

गूंज है ये सत्य की या  नाद ये असत्य की |

गीत है ये प्रेम का या है बिगुल संग्राम का,

शब्द हैं वाचाल के या संकेत है ये मूक का, 

अनंतता है सिन्धु की या है संकीर्णता है ये ताल की ,

अद्यतः अनभिज्ञ है , "जीवन-सिद्धांत" से 

Views: 493

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 29, 2013 at 8:45am

जींदगी की परिभाषा को सुन्दर बिम्बों के आधार ले खोजती सुन्दर रचना सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय अनुज कुमार पांडे जी.

Comment by Anuj kumar Pandey on May 27, 2013 at 6:55pm

सभी सम्मानित जनों को बधाई के लिए बहुत -२ धन्यवाद |

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 26, 2013 at 9:45am

आ0 अनुज भाई जी,   बहुत सुन्दर रचना।.. बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by ram shiromani pathak on May 25, 2013 at 10:15pm

बहुत सुन्दर रचना, बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 25, 2013 at 7:32pm

ये मंथन करने का दार्शनिक प्रश्न है | जिंदगी क्या है, यह सबी के लिए अलग अलग है, किसी के लिए भौतिक सुखा भोगने 

तो किसी के लिए स्वाध्याय करने, किसी के लिए यह प्रभु की सुन्दर देन है | किसी के लिए यह सुख दुख का अहसास है \

और यही सब आपने रचना में उल्लेख करने का प्रयास भी किया है | बधाई 

Comment by Vindu Babu on May 25, 2013 at 7:23pm
जिन्दगी की गहन व्याख्या।
वास्तव में आदरणीय समझते-समझते जुंदगी गुजर जाती है पर समझ नहीं आता कि है क्या जिंदगी!
सुन्दर प्रस्तुति।
सादर
Comment by विजय मिश्र on May 25, 2013 at 10:45am

ऊपर वाला एक बहुत सफल दार्शनिक कथाकार है ,जिसके झोले में अनंत कथाएँ लिखी भरीं पड़ीं हैं ,इसलिए हर दो की जीवन कथा को सर्वथा जुदा कर देता है .,चटपटा ,झालदार ,मसालेदार ,कभी बंगाल ,असाम या झारखण्ड ट्रेन से आयें तो झालमुढ़ी खाएँ ,जिंदगी कुछ ऐसी ही है -खट्टी ,मीठी ,तीती और न जाने कितने स्वादों से भरी और एक टुकड़ा पतला सा नारियल का मिठास लिए . अजीब सी है -बिन्दू से सिंधु तथा शून्य से ब्रह्माण्ड तक का विन्यास इसमें निहित है .

पंकजजी , आपके प्रश्नों में सारे उत्तर हैं . सुंदर कविता .

Comment by बृजेश नीरज on May 24, 2013 at 10:58pm

आदरणीय बहुत सुन्दर प्रयास आपका। आपको ढेरों बधाई।
एक निवेदन करना चाहूंगा कि 'है'' का प्रयोग कई जगह आवश्यक नहीं है, उसके बिना काम चल सकता था लेकिन उसे प्रयोग किया गया है।
सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service