चेहरे पर चेहरे जड़े हैं,
अक्स लोगों से बड़े हैं !
खो गई पहचान जब से
जहाँ थे अब तक खड़े हैं !
अभी फूलों मे महक है
इम्तहां आगे कड़े हैं !
ठोकरों से दोस्ती है ?
राह मे पत्थर पड़े हैं !
इन्हें कुछ कहना नहीं
दर्द हैं ,चिकने घड़े हैं !
_______________प्रो. विश्वम्भर शुक्ल
(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
ठोकरों से दोस्ती है ?
राह मे पत्थर पड़े हैं !
इन्हें कुछ कहना नहीं
दर्द हैं ,चिकने घड़े हैं... क्या बात है !! बहुत-२ बधाई आपको
स्नेही बंधु राजेश कुमार झा साहब ,आपकी प्रतिक्रया स्नेह से भरी मुझे भी निरुत्तर कर गई न ! आपका प्रेम यूँ ही बना रहे ,यही कामना है !
आपका हार्दिक आभार सराहनात्मक टिप्पणी के लिए सुश्री राजेश कुमारी जी !
गीतिका 'वेदिका' जी आपको हार्दिक धन्यवाद रचना पसंद करने के लिए !
वीनस केसरी जी 'गीतिका ' पसंद करने के लिए आभार आपका !
मित्र अरुन शर्मा 'अनंत' जी आपका स्नेहिल धन्यवाद है !
आपकी दृष्टि का आभार सौरभ पाण्डेय जी ,स्नेह सदैव प्रार्थित !
कविता भाव पसंद आये, आदरणीय.
बहुत ही सुन्दर गीतिका आदरणीय हार्दिक बधाई स्वीकारें.
सुन्दर गीतिका लिखी प्रोफ़ेसर साहब ...
हार्दिक बधाई
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