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प्रेम योग - कुंडली छंद

बीमारी के अर्थ दो , नहि केवल ये रोग  

इक तो केवल रोग है, दूसर केवल योग   

दूसर केवल योग, बहूत है कठिन समझना   

प्रेम रोग इक भाव , इसे है सरल समझना 

कह सागर सुमनाय,कहो अब कुशल तिहारी  

रोग योग दो अर्थ , प्रेम कहा या बिमारी  

मौलिक व अप्रकाशित 
आशीष श्रीवास्तव (सागर सुमन) 

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Comment

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Comment by राजेश 'मृदु' on September 4, 2013 at 6:02pm

जय हो आदरणीय, बहुत अच्‍छी लगी आपकी प्रस्‍तुति,सादर

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 8:51am

आप ने प्रयास किया ये भी बड़ी बात है ... सुन्दर प्रयास  के लिए बधाई आप को

Comment by Ashish Srivastava on September 3, 2013 at 8:04pm

शिव नतायण जी , अन्नपूरना जी , ब्रिजेश जी , आप सभी का सुझाव् का स्वागत है , शीघ्र ही एक और कुंडली लेकर उपस्थित होता हूँ |

रविकर जी विशेष आभार , कुंडली को सही कर पप्रेषित करने के लिए 

Comment by Ashish Srivastava on September 3, 2013 at 8:01pm

Dr.Prachi Singh जी : संशय समाधान के लिए आप का आभार .......

Comment by रविकर on September 3, 2013 at 7:54pm

बीमारी के अर्थ दो , नहि केवल ये रोग |
इक तो केवल रोग है, दूसर केवल योग
दूसर केवल योग, बहुत है कठिन समझना
प्रेम रोग इक भाव , भाव में नहीं उलझना
कह सागर सुमनाय, कहो अब कुशल तिहारी
रोग योग दो अर्थ , प्रेम भी है बीमारी ||

Comment by रविकर on September 3, 2013 at 7:51pm

क्या बात है क्या बात है क्या बात-
सफल प्रयास-

आभार आदरणीय-


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 3, 2013 at 7:34pm

//मेरी इस छंद में  प्रथम और अंतिम शब्द में मात्र भिन्नता है , क्या ये विधान संगत है या नहीं//

आ० आशीष जी .. एक ही अभिव्यक्ति में बीमारी और बिमारी दो तरह से एक ही शब्द का लिखा जाना बिल्कुल गलत है... इससे यही परिलक्षित होता है कि जहाँ जो बन पड़े फिट कर दो वाली अप्रोच से रचना को लिखा गया है.. और यह भ्रम होता है कि रचनाकार के लिए कौन सा शब्द प्रारूप सही है कौन सा गलत, रचाकार उसे स्वयं ही नहीं जानता 

शब्द को परिवर्तित करके गलत प्रारूप में लिखा जाना हिज्जा दोष होता है जो रचनाओं को असहज बना देता है... इसके प्रति सावधान रहना चाहिये 

सादर.

Comment by बृजेश नीरज on September 3, 2013 at 7:28pm

विचार को संयत कर लेने के बाद ही रचना करनी चाहिए। खुद की अस्पष्टता रचना में भी झलकती है। जैसा आपकी रचना में हुआ है। रोग, योग, बीमारी में आप भी भटक रहे हैं और पाठक को भी भटका रहे हैं।

बहरहाल, इस प्रयास के लिए बधाई!

Comment by annapurna bajpai on September 3, 2013 at 4:23pm

आ० //कह सागर सुमनाय//  की जगह यदि कहे सागर सुमन कविराय // या सागर कविराय // या सुमन कविराय // का प्रयोग कर मात्राए गिन लें । आ० प्राची जी के सुझाव पर  मै सहमत हूँ । 

Comment by Shyam Narain Verma on September 3, 2013 at 1:10pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.

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