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तलाश की महफिले तो तन्हाईयाँ मिली !

मुझको वफ़ा के बदले  बेवफायियाँ मिली !

 

जिक्रे चाहत पर सदा लब खामोश ही रहे!

मुझको फिर क्यों  इतनी रुश्वायियाँ मिली !

 

मेरे रकीबो को तो साथ उसका मिला !

मुझको उसकी सिर्फ परछाईयाँ मिली !

 

मनायेगा शायद मातम मेरी जुदाई का वो !

सुनने को उसके घर पे शहनाईयाँ मिली !

हुस्न की बदौलत फ़लक को पा  गया  है वो !

मुझको खामोश कब्र सी गहराईयाँ मिली !

 

उसकी तूफ़ान-ए- बेवफाई में  मिट गया  ‘सागर’!

और उसको पाक  प्यार  की पुरवाईयाँ मिली !

 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2013 at 12:12pm

आपकी अबतक इस अंदाज़ की कई प्रस्तुतियाँ आ चुकी हैं.  इस रचना के भाव पक्ष के लिए धन्यवाद.

आपको आपकी रचनाओं पर उचित सलाहें भी मिलती रही हैं. आप अब उन सलाहों और सुझावों पर सार्थक ध्यान देना शुरू कीजिये. मंच पर होने का लाभ लें. शुभेच्छाएँ.

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2013 at 2:06am

बहुत खूब भाई लगे रहिये ..... आप एक सही जगह पर मौजूद हैं ... खुद को दिशा दीजिए ,,, मंजिल मिलेगी

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 5:11am

भावों को तरीके से संप्रेषित किया है आदरणीय अनुराग जी.... शिल्प का ज्ञान नहीं है तो चुप रहना ही बेहतर है लेकिन जिन जानकारों ने इस विषय में कहा है उनकी प्रतिक्रिया पर विचार अवश्य कीजिएगा.... बधाई इस कृति के लिए.....

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 8, 2013 at 11:14pm

आदरणीय अत्यंत सुन्दर प्रयास हुआ है पसंद आया कुछ कंटक त्रुटियाँ हैं कृपया देख लें इस प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें.

Comment by annapurna bajpai on October 8, 2013 at 11:04pm

सुंदर भाव शब्द संयोजन भी काफी अच्छा है बहुत बधाई आपको । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 8, 2013 at 9:52pm

आदरणीय डॉ अनुराग जी आपकी रचना का भाव पक्ष मर्म स्पर्शी है अगर ग़ज़ल की शिल्प का साथ हो तो सोने पे सुहागा हो जायेगा,  उम्मीद है जल्द आपकी ग़ज़ल भी पढ़ने को मिलेगी, इस रचना के लिये बधाई स्वीकार करें

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on October 8, 2013 at 5:42pm

वाह कमाल का लेखन,,,,मुबारक हो,,,,,,,,

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 7, 2013 at 9:07pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , और आदरणीय अभिनव अरुण जी , आप बड़े भाई लोगो के उत्साह वर्धन से मेरा दिल बाग़ बाग़ हो जाता है ! रचना को पसंद करने के लिय आभार ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 7, 2013 at 8:25pm

आदरणीय अनुराग भाई , बहुत भाव पूर्ण , बहुत सुन्दर बातें कही है आपने , सुन्दर रचना के लिये बधाई !!

Comment by Abhinav Arun on October 7, 2013 at 7:43pm

उसकी तूफ़ान-ए- बेवफाई में  मिट गया  ‘सागर’!

और उसको पाक  प्यार  की पुरवाईयाँ मिली !

                            ..सुन्दर कृति , हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ सैनी साहिब !!

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