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दीप -शिखा (कल्पना मिश्रा बाजपेई)

आज बता दे दीप -शिखा प्रिय 

मैं तुझ सी बन जाऊँ कैसे ?

दीप तले है नित अँधियारा 

फिर भी तू अँधियारा हरता

पल -पल तू, धुआँ रूप में

हर पल, खुद की व्यथा उगलता

देख रही हूँ ज्योति तेरी,में

तेरा व्याकुल ह्रदय मचलता

पर कालिमा हरने में ही

दीप तेरा यह जीवन जलता

मानवता को रोशन कर के  भी

मैं उजयारा कर पाऊँ कैसे ?

उढ़कर आता जब परवाना

आलिंगन करने तुझको

आखिर वह,जल ही जाता

तेरे जीवन की ज्वाला में

झुलसाता तन अपना पागल

उसके प्राणों का बलिदान न,तेरी

जीवन गति में बाधा पहुंचाता 

अहो -भाग्य है जीवन तेरा

अविरल गति से तू जलता जाता

मंद गति ये जीवन-दीपक मेरा

इसको अनवरत जलाऊँ कैसे ?

आज बता दे दीप -शिखा प्रिय

मैं तुझ सी बन जाऊँ कैसे ?

कल्पना मिश्रा बाजपेई

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 380

Comment

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Comment by kalpna mishra bajpai on February 22, 2014 at 10:34pm

मेरी छोटी सी कोशिश के लिए,आप गुणी जनों की होंसला अफजाई के लिए बहुत -बहुत आभार ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 22, 2014 at 6:56pm

बहुत सुन्दर भाव रचना | औरो का अंधियारा हरने दीपशिखा सी बनने की कामना ! वाह 

हार्दिक बधाई एवं स्वागत आदरणीया कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी 

Comment by Shyam Narain Verma on February 22, 2014 at 9:58am
इस खूबसूरत  रचना की हार्दिक बधाई....

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