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जब सब कुछ था
मेरे पास
जो
जीने के लिए काफी था
तुम्हारा प्यार,
तुम्हारा साथ,
तुम्हारा समय
तुम्हारा विश्वास
हमारा साहस
यही सब
मेरी बहुमूल्य पूंजी थी
वो
उड़ान भरते
सुनहरे सपने
जो
हम दोनों ने कभी देखे थे
दुनिया
अपने कदमों में थी
तो किसकी लगी नज़र ?
जो छूटा ...
तुम्हारा प्यार
तुम्हारा साथ
क्यों रुकीं
वो सांसें
वो जिन्दगी
टूटीं उम्मीदें
टूटे सपने
और
साथ ही
टूट गया
मेरा भरोसा
मेरा साहस
शायद
नहीं नहीं
नहीं कभी नहीं
खोयेगा
मेरा धैर्य
मेरा विश्वास
नहीं टूटेगा
मेरा साहस
क्योंकि
तुम
हाँ तुम हो
हमेशा मेरे साथ
मेरी हिम्मत बन
दोगे मुझे प्रेरणा
आगे बढ़ने की
..............................
मौलिक व अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2014 at 12:00am

आदरणीया, आपकी इस प्रस्तुति के माध्यम से बृजेश भाई ने बहुत पते की बात की है.

प्रयास के लिए हार्दिक बधाई.

सादर

Comment by Sarita Bhatia on March 3, 2014 at 4:03pm

आदरणीय ब्रिजेश जी कृपया थोड़ा अगर विस्तार से इस बारे में समझा सकें तो महती कृपा होगी चाहे msg में ही बता दीजिये इसी में से उदाहरण देकर plzz 

Comment by Sarita Bhatia on March 3, 2014 at 4:01pm

आदरणीय गिरिराज जी हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on March 3, 2014 at 4:00pm

आदरणीय अन्नपूर्ण जी शुक्रिया 

Comment by Sarita Bhatia on March 3, 2014 at 4:00pm

आदरणीय लक्ष्मण जी हार्दिक आभार 

Comment by बृजेश नीरज on March 2, 2014 at 12:58pm

बहुत सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!

पंक्तियों को तोड़ते समय प्रवाह को आधार बनाया जाना चाहिए.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 2, 2014 at 9:39am

आदरणीया सरिता जी . यही विश्वास , आत्मविश्वास तक पहुँचयेगा एक दिन , सुन्दर रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by annapurna bajpai on March 1, 2014 at 1:08pm

सुंदर रचना , आ0 सरिता भाटिया जी । 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 1, 2014 at 12:32pm

सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई 

Comment by Sarita Bhatia on February 28, 2014 at 7:26pm

हार्दिक आभार कल्पना जी 

कृपया ध्यान दे...

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