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    १११  १११२  ११ १११, १११२  ११११ ११

9-) मान बड़ाई सब चहे, कितनी इसकी हद।

     दूजे को देते नहीं, पोषत खुद का मद॥ 

10-) मात-पिता व गुरु से, हर दम बोलत झूठ।  

       आपा भीतर झांक लो, हरि जाएगा रूठ॥

11-) ज्ञान क्षुदा उर में लिए, ढूंढत फिरत सुसंग।

       उर की आंखे खोल लो, जग में भरो कुसंग॥

12-) धन दौलत कुछ न बचे, तब तक मन में चैन।

       चरित्रिक बल सबल है, ना हो तुम बेचैन॥ 

13-) जनम-मरण के बीच में, कइ जीवन सोपान।

       भज लो सीता राम कों, हुइ जाए कल्याण॥ 

14-) लड्डू मेवा दूध फल, गर चाहत हरि खाय। 

       दीनन कछु देते नहीं, कैसे हरि को भाए॥

15-) काम वासना जगत में, बड़े पसारे जाल।

       हत भागी वे मनुज हैं, समझ न आवे चाल॥

16-) मनका माला पकड़ कर, बैठ रहत दिन रात। 

       सोचत हो हरि मिलेंगे, ये है झूठी बात॥

17-) जगत पसारा देखिया, सब लागे निसार। 

       अंतर मुख कर बैठिए, गह कर साँचो सार॥ 

18-) काम क्रोध मद जात लै, सीधे जम के द्वार।

       समय राहत गर चेत गए, तो होगा उद्धार॥ 

19-) सुता देह को पाइ के, आई बाबुल गेह।

       बे मन सब को पाईये, कोई ना करता नेह॥

कल्पना मिश्रा बाजपेई            

मौलिक व अप्रकाशित

       

   

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Comment

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Comment by kalpna mishra bajpai on March 18, 2014 at 9:26pm

आदरणीय श्री जितेंद्र सर आपको दोहे पसंद आए उसके लिए आभार सादर। गलती से आपके द्वारा लिखा गया कमेंट कट गया उसके लिए माफी चाहती हूँ। 

Comment by kalpna mishra bajpai on March 18, 2014 at 9:20pm

आदरणीय श्री शिज्जु शकूर जी आभार आपका सादर ।  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 14, 2014 at 10:09pm

आपकी पिछली दोहावली के मुकाबले ये काफी बेहतर लग रही है शिल्प का भी निर्वाह हुआ है बधाई स्वीकार करें। कुछेक दोहों में अभी भी गेयता बाधित है एक बार फिर से देख लें।

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