For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122- 2122- 212

जब से तेरी जुस्तजू होने लगी             (जुस्तजू=तलाश)

अजनबी सी मुझसे तू होने लगी

 

वक्त का होने लगा है वो असर

अब महक फूलों की बू होने लगी

 

भागता था जिस बला से दूर मैं

हर तरफ वो रू-ब-रू होने लगी

 

मुस्तकिल ये ज़िन्दगी होती नहीं           (मुस्तकिल= स्थाई)

क्यूँ इसी की आरज़ू होने लगी

 

उम्र के फटने लगे हैं अब लिबास

सो दवाओं से रफ़ू होने लगी

 

नफरतें ही नफरतें हैं देखिये

बदगुमानी चार सू होने लगी             (बदगुमानी=बुरी धारणा रखना)

 

गर्मियों का देश में मौसम हुआ

क्यूँकि बातों से ही लू होने लगी

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 669

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 27, 2014 at 7:25am

आदरणीया डॉ प्राची जी रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 26, 2014 at 8:11pm

उम्र के फटने लगे हैं अब लिबास

सो दवाओं से रफ़ू होने लगी

भागता था जिस बला से दूर मैं

हर तरफ वो रू-ब-रू होने लगी

बढ़िया ग़ज़ल हुई है, ये दो शेर ख़ास पसंद आये.

हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2014 at 2:04pm

आदरणीय मुकेश जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2014 at 2:04pm

आदरणीय नीरज जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Neeraj Neer on March 21, 2014 at 6:49pm
वाह बहुत उम्दा ..
Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on March 21, 2014 at 4:05pm

खूबसूरत गजल, आप को बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2014 at 9:57pm

आदरणीय गजेन्द्र जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2014 at 9:56pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका हार्दिक आभार
आये दिन काम के दौरान यही नज़ारा देखने को मिलता है मन व्यथित भी होता है लेकिन सच्चाई स्वीकार करने के अलावा कोई चारा भी नही है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2014 at 9:54pm

आदरणीय नादिर भाई नवाज़िशों के लिये तहे दिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2014 at 9:54pm

आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, प्रदत्त चित्र पर अच्छे दोहे रचे हैं आपने.किन्तु अधिकाँश दोहों…"
10 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"देती यह तस्वीर  है, हम को तो संदेशहोता है सहयोग से, उन्नत हर परिवेश।... सहयोग की भावना सभी…"
13 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"   आधे होवे काठ हम, आधे होवे फूस। कहियो मातादीन से, मत होना मायूस। इक दूजे का आसरा, हम…"
17 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्र को साकार करता बहुत मनभावन गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहावलीः सभी काम मिल-जुल अभी, होते मेरे गाँव । चाहे डालें हम वहाँ, छप्पर हित वो छाँव ।। बैठेंगे…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"दिये चित्र में लोग मिल, रचते पर्ण कुटीरपहुँचा लगता देख ये, किसी गाँव के तीर।१।*घास पूस की छत बना,…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हाड़ कंपाने ठंड है, भीजे को बरसात। आओ भैया देख लें, छप्पर के हालात।। बदरा से फिर जा मिली, बैरन…"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । सर यह एक भाव…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा लेखन किया है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। बहुत बहुत…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
Wednesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service