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2122- 2122- 212

जब से तेरी जुस्तजू होने लगी             (जुस्तजू=तलाश)

अजनबी सी मुझसे तू होने लगी

 

वक्त का होने लगा है वो असर

अब महक फूलों की बू होने लगी

 

भागता था जिस बला से दूर मैं

हर तरफ वो रू-ब-रू होने लगी

 

मुस्तकिल ये ज़िन्दगी होती नहीं           (मुस्तकिल= स्थाई)

क्यूँ इसी की आरज़ू होने लगी

 

उम्र के फटने लगे हैं अब लिबास

सो दवाओं से रफ़ू होने लगी

 

नफरतें ही नफरतें हैं देखिये

बदगुमानी चार सू होने लगी             (बदगुमानी=बुरी धारणा रखना)

 

गर्मियों का देश में मौसम हुआ

क्यूँकि बातों से ही लू होने लगी

(मौलिक और अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 27, 2014 at 7:25am

आदरणीया डॉ प्राची जी रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 26, 2014 at 8:11pm

उम्र के फटने लगे हैं अब लिबास

सो दवाओं से रफ़ू होने लगी

भागता था जिस बला से दूर मैं

हर तरफ वो रू-ब-रू होने लगी

बढ़िया ग़ज़ल हुई है, ये दो शेर ख़ास पसंद आये.

हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2014 at 2:04pm

आदरणीय मुकेश जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2014 at 2:04pm

आदरणीय नीरज जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Neeraj Neer on March 21, 2014 at 6:49pm
वाह बहुत उम्दा ..
Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on March 21, 2014 at 4:05pm

खूबसूरत गजल, आप को बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2014 at 9:57pm

आदरणीय गजेन्द्र जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2014 at 9:56pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका हार्दिक आभार
आये दिन काम के दौरान यही नज़ारा देखने को मिलता है मन व्यथित भी होता है लेकिन सच्चाई स्वीकार करने के अलावा कोई चारा भी नही है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2014 at 9:54pm

आदरणीय नादिर भाई नवाज़िशों के लिये तहे दिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2014 at 9:54pm

आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका

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