For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिंदगी ढूंढते रह गए तुझको ---डा० विजय शंकर

जिंदगी , कितनी सरल , खूबसूरत है तू
तुझको देखें जी भर , कि जी लें तुझको ,
कैसे रखा , कैसे पाला है , हमने तुझको,
तुझको पढ़ें मन भर , कि लिखें तुझको |

बोझ ,शौक ,मौज नाम दिए हमने तुझको
ये रीति, ये रिवाज ,ये बंदिशें , ये विधान
ये दायरे ,ये पहरे ,ये कानून , ये फरमान
ये भी तेरे हैं , तेरे बन्दों ने दिए हैं तुझको |

बाँध के रख दिया हजार बंधनों में तुम्हें
दावा यह कि सब तेरी हिफाजत के लिए है
इतनी बंदिशें तूने न देखी , न जानी होगीं ,
जितनी हमने तेरी सौगात में दे दी हैं तुझको |

सारे रूप , श्रृंगार धरती पर तेरे हैं ,तुझसे
हम अपने ढंग से सजाते रह गए तुझको
ये सजावटें, ये बनावटें हमसे दूर ले गयीं तुझको
हम कानूनों और किताबों में ढूंढते रह गए तुझको |

डा० विजय शंकर

( मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 810

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 20, 2014 at 10:45am
बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय विजय निकोर जी ,
सादर .
Comment by vijay nikore on June 20, 2014 at 8:19am

अति सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई, आदरणीय विजय जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 19, 2014 at 5:48pm
Yes , I , in fact wrote it when I saw in the site of Speaking Tree, a spiritual forum , in Times of India , that many seekers keep only discussing life , discussing life too much with putting so many restrictions upon it ,and missing the bliss of living it . Poems are not of any meaning to them , I wrote this in the form of a poem and posted it here. Yes, I agree that one should keep discussing life , time to time , but not that much that one misses the charm of it . That's the idea.
Thanks that you respected Dr. Prachi Singh liked it and expressed you views of appreciation .
Regards .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 19, 2014 at 11:13am

ज़िंदगी की सहजता को इतनी सीमाओं में, दायरों में, अलंकारों में, परिभाषाओं में बाँध कर अब जो देखते हैं उसमें सब कुछ दीखता है बस ज़िंदगी को ही ढूढ़ते रह जाते हैं.....

बहुत सुन्दर भाव प्रस्तुति के 

हार्दिक बधाई आ० डॉ० विजय शंकर जी 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2014 at 9:41pm
आदरणीय श्रीमती मंजरी पांडे जी ,
रचना पर बधाई के लिए आभार ,
सादर.
Comment by mrs manjari pandey on June 15, 2014 at 9:35pm
जिंदगी , कितनी सरल , खूबसूरत है तू
तुझको देखें जी भर , कि जी लें तुझको ,
कैसे रखा , कैसे पाला है , हमने तुझको,
तुझको पढ़ें मन भर , कि लिखें तुझको |

आदरणीय डॉक्टर विजयशंकर जी बधाई स्वीकारें
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2014 at 5:00pm
धन्यवाद एवं आभार , आ o महिमा जी ,
Comment by MAHIMA SHREE on June 15, 2014 at 4:08pm

जिंदगी , कितनी सरल , खूबसूरत है तू
तुझको देखें जी भर , कि जी लें तुझको ,
कैसे रखा , कैसे पाला है , हमने तुझको,
तुझको पढ़ें मन भर , कि लिखें तुझको |...वाह बहुत सुंदर .. हार्दिक बधाई प्रेषित है सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 13, 2014 at 12:05am
आ ० मीना पाठक जी , धन्यवाद
Comment by Meena Pathak on June 12, 2014 at 11:51pm

अति सुन्दर रचना .. बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service