For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

थर्राहट ... (विजय निकोर)

थर्राहट

कुछ अजीब-सा एहसास ...

बेपहचाने कोई अनजाने

किसी के पास

इतना पास क्यूँ चला आता है

विश्वास के तथ्यों के तत्वों के पार

जीवन-स्थिति की मिट्टी के ढेर के

चट्टानी कण-कण को तोड़

निपुण मूर्तिकार-सा मिट्टी से मुग्ध

संभावनाओं की कल्पनाओं के परिदृश्य में

दे देता है परिपूर्णता का आभास ...

उस अंजित पल के तारुण्य में

सारा अंबर अपना-सा

स्नेहसिक्त ओंठ नींदों में मुस्करा देते

ज़िन्दगी फिर से झलमलाती-सी

बिना शिकायत, अचानक खूबसूरत

सुसंगत लगती

अन्तस्तल-गुहा में दुबकी-सी बैठी

पुराने गहरे धक्के की दुविधा

को अजनबी-सा अजाना करते

मंडराते ख्वाबों के प्रसारों में

हम अपनी ही आँखों में

अपने कद से ऊँचे लगने लगते हैं

परन्तु कब तक ?

उफ़ ! यह उँचाइयाँ द्वंद्वात्मक

आत्मीयता के अपरिमय आयतन में भी

आन्तरिक तंग तहखानों में उभरती

नए फोड़े के नए घाव की संभावना

अकस्मात गहन परिवर्तन की परिचित गरजन

थर्राहट

डरता है मन ...

---------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 637

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on September 21, 2014 at 5:29pm

आदरणीया विन्दु जी,

रचना की सराहना के लिए दिल से आभार .....

इ...त...नी  लम्बी प्रतिक्रिया तो जीवन भर मेरे लिए किसी ने नहीं लिखी थी ...

सादर,

विजय

Comment by vijay nikore on August 14, 2014 at 2:08pm

आपका आशीर्वाद मिला, मन आल्हादित हुआ। 

आपके उत्साह वर्धन से रचना सार्थकता को प्राप्त हुई । हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सौरभ जी।

Comment by vijay nikore on August 14, 2014 at 2:02pm

//आपकी रचनाएं अपने इर्द गिर्द भावनाओं के जाल बुनती हुई चलती हैं जो पाठक को उसमे फँसाने में कामयाब हैं हर बार की तरह बेहतरीन रचना साझा की आपने//

आपके भावमय आशीर्वाद और उत्साहवर्धन के लिए आभारी हूँ। 

प्रेरणा के लिए धन्यवाद, आदरणीया राजेश जी।

Comment by vijay nikore on August 14, 2014 at 8:02am

आदरणीय लक्ष्मण जी, रचना में निहित भाव के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on August 14, 2014 at 7:59am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय आमोद जी।

Comment by vijay nikore on August 13, 2014 at 11:31am

रचना आपको अच्छी लगी, मेरा लिखना सार्थक हुआ। धन्यवाद, आदरणीय विजय जी।

Comment by vijay nikore on August 13, 2014 at 11:30am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गोपाल जी।

Comment by vijay nikore on August 3, 2014 at 4:03pm

//हमेशा की तरह आपकी कलम की कायल हूँ .... और रहूंगी .... दिल के मर्म भावों को आपकी सोच का सागर मिल गया और कविता हो गयी .... बहुत बहुत कमाल की रचना ... बहुत बहुत नमन आपको .....//

कविता पर आपकी प्रीतिकर प्रतिक्रिया से प्रोत्साहन मिला । उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया प्रियंका जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 1, 2014 at 6:06pm

आत्मीयता का सच कितनी घिनौनी संभावनाओं का कारण हुआ करता है. इस ऊहपोह को अभिव्यक्त करती इस रचना-प्रवाह के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विजय निकोर भाईसाहब.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 30, 2014 at 10:48am

ख़्वाबों परिकल्पनाओं की दुनिया बेहद खूब सूरत होती है जो अपने कल्पित पंखों से उड़ाकर चित्त को बहुत दूर बहुत ऊँचा ले जाती है किन्तु फिर वक़्त आता है की वो पंख वास्तविकता की नमी से गीले हो जाते हैं और हम वापस धरातल पर होते हैं बस यही जीवन है ,आपकी रचनाएं अपने इर्द गिर्द भावनाओं के जाल बुनती हुई चलती हैं जो पाठक को उसमे फँसाने में कामयाब हैं हर बार की तरह बेहतरीन रचना साझा की आपने बहुत बहुत बधाई आ० विजय निकोर जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंदः श्राद्ध पितृ-पक्ष आवश्यक है, उद्धार हेतु आत्मा I करें हुतात्मा के हित तर्पण, मिले उन्हें…"
24 minutes ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो

.तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो जो मुझ में नुमायाँ फ़क़त तू ही तू हो. . ये रौशन ज़मीरी अमल एक…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 171 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई श्यामनाराण जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"वाहहहहहह गुण पर केन्द्रित  उत्तम  दोहावली हुई है आदरणीय लक्ष्मण धामी जी । हार्दिक…"
Tuesday
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
Tuesday
Shyam Narain Verma commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - उस के नाम पे धोखे खाते रहते हो
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Monday
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और ज्ञान वर्धक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service