For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बेसुध वैतालिक गाते हैं

 

नारी  का   जननी में ढलना

जीवन का जीवन में पलना

 

नभ पर मधु-रहस्य-इन्गिति के आने का अवसर लाते है

बेसुध वैतालिक गाते हैं

 

जग में  धूम मचे   उत्सव की

अभ्यागत के पुण्य विभव की

 

मंगल साज बधावे लाकर प्रियजन मधु-रस सरसाते  हैं

बेसुध वैतालिक गाते हैं

 

आशीषो      के   अवगुंठन   में

शिशु अबोध बंधता बंधन में

 

दुष्ट ग्रहों से मुक्त कराने स्वस्ति लिए ब्राह्मण आते है

बेसुध वैतालिक गाते हैं

 

(मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 731

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 18, 2014 at 11:27am
आदरणीय निकोर जी
आपने रचना के मूल बिंदु को स्पर्श किया
सादर आभार
Comment by vijay nikore on August 18, 2014 at 2:49am

//आशीषो      के   अवगुंठन   में

शिशु अबोध बंधता बंधन में//

सारी रचना ही सुन्दर है, पर यह भाव कुछ और ही है ! आपकी सोच को नमन, आदरणीय गोपाल जी।

 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 17, 2014 at 8:59pm

आदरणीय सौरभ जी

सादर i स्तुत्य i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 17, 2014 at 8:02pm

आदरणीय गोपाल नारायनजी,

रचनाओं को पाठक वाचन क्रम में एक सीमा के बाद न तो समय देता है, न रचनाकार पाठकों से मनोनुकूल समय ले पाते हैं. पाठकों से उचित समय मात्र और मात्र रचनाएँ लिया करती हैं.

इसी कारण मैं अक्सर कहता हूँ, कि सद्साहित्य रचनाकर्म और उसमें सतत शुद्धता का प्रयास हुआ करता है, बस !

कोई रचनाकर रचनाकर्म के अलावा साहित्य-जगत में जो कुछ करता है, वह उसका व्यक्तिगत व्यवहार होता है. और कुछ नहीं.

व्यवहार, संपर्क, स्वीकार्यता-अस्वकार्यता आदि साहित्यकर्म नहीं सामाजिक आचरण हुआ करते हैं.

सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 17, 2014 at 7:38pm

आदरणीय सौरभ जी

भाव विह्वल हूँ कि आपने इस रचना को इतना समय दिया i आप की वाग्विदग्ध टिप्पणी ने  मेरा पोर-पोर रोमांचित कर दिया I  निःशब्द हूँ  श्रीमन I   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 17, 2014 at 6:22pm

तिल-तिल संचित होते अनुभव वैयक्तिक रूप से किसी को जितना समृद्ध करते हैं, उतना ही वे सामाजिक रूप से उपादेय हुआ करते हैं. इन्हीं का प्रतिफल परम्पराओं और संस्कारों में परिलक्षित होता है. जब कोई संवेदनशील मन इन्हें शाब्दिक करता है तो वाचन-अनुभूतियों को चेतना और परम्पराओं के मानिक-मनकों का चकित करता भान होता है.

आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपकी इस प्रस्तुति पर मन न केवल मुग्ध है बल्कि आपकी प्रस्तुति के तथ्यों की गहनता पर नत भी है.

बेसुध वैतालिकों का आना और मानव जन्मोत्सव के अवसर पर गाना जिन इंगितों का पर्याय है वह सनातनी संस्कारों का अत्यंत गूढ़ स्वरूप है.

// नारी  का   जननी में ढलना
जीवन का जीवन में पलना .//
अद्भुत !

// नभ पर मधु-रहस्य-इन्गिति के आने का अवसर लाते है //

नभ पर मधु-रहस्य के इंगित ! नक्षत्रों के प्रभाव को कितनी सुन्दरता से अभिव्यक्त किया गया है ! जीवन का स्वरूप और उसका होना मात्र भौतिक प्रक्रिया कैसे हो सकती है ? यदि यही था, तो मस्तिष्क की समस्त पराभौतिक प्रक्रियाओं को हम कैसे समझें, जिसे आजतक तथाकथित ’अत्यंत उन्नत’ विज्ञान समझ नहीं पाया !  

प्रस्तुति का प्रत्येक बन्द अपने आप में विशद अनुभूति को सहेजे हुए है.
इस तरह की रचनाओं की आवश्यकता हर मंच को होती है.

// मंगल साज बधावे लाकर प्रियजन मधु-रस सरसाते  हैं //

इस पद में तनिक परिवर्तन की आवश्यकता प्रतीत हो रही है, आदरणीय. ’प्रियजन मधु-रस सरसाते’ के वाचन में उच्चारण के लटपटाने का कारण बन रहा है. यह किसी पद के लिए दोष हुआ करता है, आदरणीय. पदों में अक्षरों के कारण ऐसी दुरूहता का होना और पदों में अनुप्रास होना दोनों भिन्न है. अनुप्रास वाचन में शब्द कौतुक और वाचन-लालित्य का सुखद कारण हुआ करते हैं.

अत्यंत गूढ़ विषय पर कलमगोई करने के लिए पुनः सादर धन्यवाद तथा हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 16, 2014 at 7:52pm
आदरणीया सविता जी i

आपका आभार i
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 16, 2014 at 7:51pm

आदरणीया सविता जी i

आपका आभार i

Comment by savitamishra on August 16, 2014 at 7:29pm

सुंदर रचना _/\_

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 16, 2014 at 3:17pm

जीतू भाई !

आपका शुक्रगुजार हूँ  i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service