अगम है प्रेम पारावार फिर भी प्रिये पतवार लेकर आ गया हूँ I
विकल मन में जलधि के ज्वार फूटे
तार संयम अनेको बार टूटे
प्राण आकंठ होकर थरथराये
नेह के बंधन सजीले थे न छूटे
प्यास की वासना उद्दाम ऐसी नयन सागर सहेजे आ गया हूँ I
नयन ने काव्य करुणा के रचे हैं
कौन से पाठ्यक्रम इससे बचे हैं
किसी कवि ने इन्हें जब गुनगुनाया
लाज ने तोड़ डाले सींकचे हैं
गीत संसार को ऐसे न भाते तरह जैसे कि मै सरसा गया हूँ I
न जाने कौन सा उन्माद है यह
चरम है और अनहद नाद है यह
रूप में रमना रमकर राम होना I
प्रकृति का शास्वात रस्वाद है यह
चाह थी नील- नभ में श्याम हो लूँ राह मे अभ्र से टकरा गया हूँ I
अगम है प्रेम पारावार फिर भी प्रिये पतवार लेकर आ गया हूँ I
(मू ल व् अप्रकाशित )
Comment
प्रणाम सर..... बहुत सुन्दर पंक्तियां हैं , और चुनिन्दा शब्दों का मेल कितना है...बधाई स्वीकार करें।
विजय जी
आपका ह्रदय से आभार् प्रकट करता हूँ
जवाहर जी
आपका आभार प्रकट करता हूँ i
नयन ने काव्य करुणा के रचे हैं
कौन से पाठ्यक्रम इससे बचे हैं
किसी कवि ने इन्हें जब गुनगुनाया
लाज ने तोड़ डाले सींकचे हैं
गीत संसार को ऐसे न भाते तरह जैसे कि मै सरसा गया हूँ I
पंक्तियाँ मुझे बेहतर लगी. सादर!
धामी जी
यहाँ हम सब मिलकर सीखते है i आपका बहुत बहुत आभार i
जीतू भाई i
आभार
आ० भाई गोपाल नारायण जी , इस सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई . मैं भी अनेकों शब्द के विषय में भ्रमित था . बहुत सी पाठ्य पुस्तकों और कथा कहानियों में भी अनेकों शब्द पढने को मिल जाता है .सहित्तिक पत्रिकाओं में भी .पर कभी किसी से पूछने या कहने का साहस नहीं कर पाया आज आ० भाई सौरभ जी और आपकी चर्चा ने भ्रम का पर्दा हटा दिया . इसके लिए आप दोनों का हार्दिक धन्यवाद .
शत शत अभिनन्दन
सादर अभिवादन/ आदरणीय निकोर जी
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