आभास हो तुम ........
आभास हो तुम विश्वास नहीं हो
तुम रूठी तृप्ति की प्यास नहीं हो
जिन मधु पलों को मौन भी तरसे
तुम उस पूर्णता का प्रयास नहीं हो
आभास हो तुम विश्वास नहीं हो
तुम रूठी तृप्ति की प्यास नहीं हो .........
अतृप्त कामनाओं के स्वप्न नीड़ हो
अभिलाष कलश के विरह नीर हो
जिस प्रकाश को तिमिर भी तरसे
तुम उस जुगनू का प्रकाश नहीं हो
आभास हो तुम विश्वास नहीं हो
तुम रूठी तृप्ति की प्यास नहीं हो ......
पथिक हो तुम निर्जीव राह के
शूलों से आहत पुष्प आह के
प्रतिपल घटती तुम देह छवि हो
तुम जीवन का मधुमास नहीं हो
आभास हो तुम विश्वास नहीं हो
तुम रूठी तृप्ति की प्यास नहीं हो .....
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी रचना पर आपकी नज़र ने जो उसमें छुपे भावों को अपनी प्रशंसा से सम्मानित किया है उसके लिए मैं दिल की गहराईयों से आपका आभारी हूँ। प्रत्युत्तर में विलम्ब के लिए क्षमा।
पथिक हो तुम निर्जीव राह के
शूलों से आहत पुष्प आह के
प्रतिपल घटती तुम देह छवि हो
तुम जीवन का मधुमास नहीं हो
बहुत खूब आ० सुशील सरना जी, बहुत सुन्दर और भावपूर्ण गीत रचा है। हार्दिक बधाई स्वीकारें।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी गीत पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
वाह ! आदरणीय सुशील भाई , लाजवाब गीत रचना हुई है , बधाई !
आदरणीय narendrasinh chauhan जी गीत पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीया rajesh kumari जी गीत पर आपकी ऊर्जावान प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय vijay nikore जी गीत पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी गीत पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ..हार्दिक बधाई आपको आ० सुशील सरना जी
अति सुन्दर। बधाई।
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