मौसम भी नीर बहायेगा …
भोर होते ही
चिड़ियों का कलरव
इक पीर जगा जाएगा
सांझ होते ही सूनेपन से
हृदय पिघल जाएगा
मुक्त- केशिनी का संबोधन
इक छुअन की याद दिलायेगा
बिना पिया के राह का हर पग
अब बोझिल हो जाएगा
निष्ठुर पवन का वेग भला
कैसे दीप सह पायेगा
रैन बनी अब हमदम तुम बिन
चिरवियोग तड़पायेगा
जाने जीवन के पतझड़ में
मधुमास कब आयेगा
अश्रु बूंदों से तब तक दिल का
स्मृति आँगन गीला हो जाएगा
प्राण प्रिय तुम प्राण मेरे हो
रुष्ट न होना मुझसे तुम
सिसकती साँस की स्वर लहरी से तो
मौसम भी नीर बहायेगा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर आपकी स्नेहिल अभिव्यक्ति का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी रचना पर आपकी स्नेहिल अभिव्यक्ति का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय vijay nikore जी रचना पर आपकी स्नेहिल अभिव्यक्ति का तहे दिल से शुक्रिया।
इस बेहतरीन, सुन्दर और भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ आदरणीय सुशील सर
आदरणीय सुशील सरना सर बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना है सादर बधाई
अति सुन्दर भाव-प्रधान रचना। बधाई।
आदरणीया rajesh kumari जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसात्मक अभिव्यक्ति का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी रचना पर आपकी स्नेहिल अभिव्यक्ति का तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी स्नेहिल अभिव्यक्ति का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय Shyam Narain Verma जी रचना पर आपकी स्नेहिल अभिव्यक्ति का तहे दिल से शुक्रिया।
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