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गजल-ये नहीं शायरी के पन्नें है!

2122 1222 22

ये मेरी जिन्दगी के पन्ने हैं!
ये नहीं शायरी के पन्ने हैं!!

ये नशेमन है मेरी आहों के!
ये तेरी बेरुखी के पन्ने हैं!!

मुफलिसी बेबसी की ये चींखे!
तीरगी इस गली के पन्नें हैं!!
ंंंंंं
ये तो बच्चों की लाशे है या रब!
ये तेरी खामुशी के पन्ने हैं!!

ना समझ हो अभी क्या समझोगे!
मेरे कागज सभी के पन्ने हैं!!

देखनी हो जिसे दुनिया 'राहुल'!
मुझको पढ़ ले इसी के पन्ने हैं!!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by mrs manjari pandey on March 11, 2015 at 12:00pm

आदरणीय राहुल जी हार्दिक बधाई स्वीकार करें अच्छी ग़ज़ल के लिए । 

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 23, 2014 at 8:37am
आदरणीय somesh kumar जी मेरा धन्यवाद कुबुल करें
Comment by Rahul Dangi Panchal on December 23, 2014 at 8:36am
आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी मैं दिल की गहराईयों से इस मंच का शुक्रिया करता हुँ ! मैंने यह्ँ बहुत कुछ सिखा है! मैं सभी गुनीजनो के निर्देषानुसार कमीयों को सुॉधारने का प्रयत्न कर रहा हुँ बस पुलिस की नौकरी की वजह से व्यस्त बहुत ज्यादा रहता हुँ! नमन!
Comment by somesh kumar on December 22, 2014 at 10:51pm

ये तो बच्चों की लाशे है या रब!
ये तेरी खामुशी के पन्ने हैं!!

ना समझ हो अभी ना समझोगे!
मेरे कागज सभी के पन्ने हैं!!

पूरी गज़ल हेतु बधाई पर जो अच्छा लगा वो पेस्ट कर दिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 22, 2014 at 9:47pm

आदरणीय राहुल जी आपकी इस रचना पर सार्थक चर्चायेँ हुई हैं, इसके अलावा इस मंच पर गज़ल के शिल्प पर समुचित जानकारी मौजूद है आगे बहुत काम आयेंगी।
बहरहाल इस प्रयास के लिये दाद कुबूल फरमायें

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 22, 2014 at 8:09pm
आदरणीय सौरभ जी मेरा सौभाग्य है जो मैं इस मंच से जुडा हुँ!
Comment by Rahul Dangi Panchal on December 22, 2014 at 8:07pm
आदरणीय gumnaam pithoragarhi व जवाहर लाल जी मेरा ह्रदय तल से धन्यवाद स्वीकार करें!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 22, 2014 at 6:26pm

आदरणीय गिरिराजभाईजी, काफ़िया पर चर्चा कर आपने विश्लेषण को पूर्णता दी है. ग़ज़ल लेखन में यह विन्दु वाकई बहुत अहम है. बहुत-बहुत धन्यवाद.
भाईजी, मंच पर फिलवक़्त कुछ अच्छे रचनाकार सदस्य हुए हैं. उनको दिशानिर्देश मिलना हम सभी का सामुहिक दायित्त्व है. अपनी समस्त विवशताओं के बावज़ूद कार्यरत रहना है.
सादर

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 22, 2014 at 6:01pm

ये तो बच्चों की लाशे है या रब!
ये तेरी खामुशी के पन्ने हैं!!

मार्मिक अभिव्यक्ति!

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 22, 2014 at 5:36pm

बहुत ही सुन्दर रचना

कृपया ध्यान दे...

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