For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत- जिन्दगी ये मेरी गम का जंजाल है

२१२ २१२ २१२ २१२

जिन्दगी ये मेरी गम का जंजाल है!
साल दर साल दिल का यही हाल है!!
मुझको तो इससे कुछ फर्क पडना नहीं!
ये गया साल है या नया साल है!!

स्याही किस्मत के उस पेज पर जा गिरी!
जिस पे तस्वीर थी मेरे दिलदार की!
या खुदा तुझसे ये क्या खता हो गयी!
मेरी किस्मत से वो अब जुदा हो गयी!
अब मुकद्दर मेरा दोस्त कंगाल है!
जिन्दगी ये मेरी गम का जंजाल है......

नाम ही है सुना मैनें देखी नहीं!
शक्ल से तो कभी क्या बला है खुशी!
है गरीबी बहुत और बहुत बेबसी!
इक नदी है यहाँ गम की बहती हुई!
क्या बताऊं तुम्हें मेरा क्या हाल है!
जिन्दगी ये मेरी गम का जंजाल है......

टीस उठती है तो फिर वो सोती नहीं!
चोट ऐसी लगी ठीक होती नहीं!
दर्द बहता है अब खून बहता नहीं!
प्यार तुझसे मेरा फिर भी घटता नहीं!
देह 'राहुल' की जख्मों की चौपाल है!
जिन्दगी ये मेरी गम का जंजाल है......


मौलिक व अप्रकाशित!

Views: 620

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 9, 2015 at 12:32pm

इस उत्तम रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by somesh kumar on January 8, 2015 at 4:56pm

लिखते रहिए भाई जी ,मंच पर रचना का स्वीकृत होना भी छोटी बात नहीं है ,बाकी ये हुनर तो अधिक पढ़ने और मनन करने से आएगा |उम्मीद है आप को आदरणीय लोगों का उचित मार्गदर्शन अवश्य मिलेगा |सद्प्रयास पर बधाई 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 7, 2015 at 8:38pm
आदरणीय गुनीजनो से निवेदन है मुझे मेरी कमीयो से अवगत कराये जिससे मैं गीत निखार सकूं सादर विनती
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 7, 2015 at 8:31pm
आदरणीय हरिप्रकाश जी व आदरणीय मिथिलेश जी आपको सादर धन्यवाद!
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 7, 2015 at 8:30pm
आदरणीय गुनीजनो से व विशेष तौर पर आदरणीय सौरभ जी से निवेदन है क्रपया मेरे इस गीत के प्रथम पर्यास पे मेरा मार्ग दर्शन करें सादर!
Comment by harivallabh sharma on January 7, 2015 at 8:29pm

वाह सुंदर रचना ..उत्तम भाव...अच्छा प्रयास..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2015 at 8:08pm
आदरणीय राहुल भाई रचना के भाव सुन्दर है बस थोड़ी सी कसावट की जरुरत है।
Comment by Hari Prakash Dubey on January 7, 2015 at 5:45pm

अब मुकद्दर मेरा दोस्त कंगाल है!
जिन्दगी ये मेरी गम का जंजाल है...... सुन्दर प्रयास ! बधाई राहुल डांगी जी ..बाकी गुणीजन लोगों की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा !

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 7, 2015 at 4:15pm
आदरणीय अनुराग जी कमंट के लिए शुक्रिया मैं फिर समझ के देखता हुँ!
Comment by Anurag Prateek on January 7, 2015 at 3:59pm

क्या कहूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी।"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"नमस्कार। प्रदत्त विषय पर एक महत्वपूर्ण समसामयिक आम अनुभव को बढ़िया लघुकथा के माध्यम से साझा करने…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीया प्रतिभा जी आपने रचना के मूल भाव को खूब पकड़ा है। हार्दिक बधाई। फिर भी आदरणीय मनन जी से…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"घर-आंगन रमा की यादें एक बार फिर जाग गई। कल राहुल का टिफिन बनाकर उसे कॉलेज के लिए भेजते हुए रमा को…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदाब। रचना पटल पर आपकी उपस्थिति, अनुमोदन और सुझाव हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।…"
11 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आपका आभार आदरणीय वामनकर जी।"
12 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आपका आभार आदरणीय उस्मानी जी।"
12 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीया प्रतिभा जी,आपका आभार।"
12 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"  ऑनलाइन शॉपिंग ने खरीदारी के मापदंड ही बदल दिये हैं।जरूरत से बहुत अधिक संचय की होड़ लगी…"
14 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीय मनन सिंह जी जितना मैं समझ पाई.रचना का मूल भाव है. देश के दो मुख्य दलों द्वारा बापू के नाम को…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"जुतयाई (लघुकथा): "..और भाई बहुत दिनों बाद दिखे यहां? क्या हालचाल है़ंं अब?""तू तो…"
16 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service