१२२२ १२२२ १२२
शिकायत हो न जाये आसमाँ से
अँधेरा अब उठा ले इस जहाँ से
अगर चुप आग है, तो कह धुआँ तू
शनासाई ये कैसी इस मकां से
तेरे कूचे के पत्थर से हसद है
शिकायत क्यूँ रहे तब कहकशाँ से
सुकूने ज़िन्दगी अब चाहता हूँ
बहुत उकता गया हूँ इम्तिहाँ से
कभी थे फूल से रिश्ते मगर अब
तगाफ़ुल से हुये हैं वे गिराँ से
परिंदों के परों ने की बग़ावत
सवाल अब पूछ्ना क्यूँ बागबाँ से
सभी बातिल इकठ्ठे हो रहे हैं
लिये सच हम खड़े हैं नातुवाँ से
सियासत की बहुत मोटी है चमड़ी
रही है बेअसर आह-ओ- फुगाँ से
ख़ुदा के नूर से बेखुद हुआ यूँ
‘ कहूँ कुछ और निकले कुछ ज़ुबाँ से ‘
**********************************
मौलिक एवँ अप्रकशित
Comment
आदरणीया निध जी , सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥
तेरे कूचे के पत्थर से हसद है
शिकायत क्यूँ रहे तब कहकशाँ से - उफ़ बहुत ही सुन्दर
आदरणीय उमेश कटारा भाई आपका आभार
आदरनीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया । आपके द्वारा इंगित कमियाँ शीघ्र दूर कर लूंगा । आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपका बहुत आभार ।
आदरनीय श्याम भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।
सुकूने ज़िन्दगी अब चाहता हूँ
बहुत उकता गया हूँ इम्तिहाँ से
वाहहहहहहहहहहहहह सर वाहहहह उम्दा
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० गिरिराज जी सभी शेर शानदार हैं ,इन की मगर बात ही कुछ और है
सुकूने ज़िन्दगी अब चाहता हूँ
बहुत उकता गया हूँ इम्तिहाँ से
कभी थे फूल से रिश्ते हमारे
तगाफ़ुल से हुये हैं वे गिराँ से
परिंदों से परों ने की बग़ावत
सवाल अब पूछ्ना क्यूँ बागबाँ से
अब दो बातों पर ध्यान दिलाना चाहूंगी ---
अगर चुप आग है , पूछो धुवाँ से------धुंए से सही होता है धुवाँ से गलत है और धुंए से काफिया नहीं बनता तो या तो शेर ख़ारिज करना पड़ेगा या कुछ और सोचना पड़ेगा
शनासाई ये कैसी इस मकां से
पांचवे शेर में तकाबुले रदीफ़ दोष बन रहा है
बाकी ग़ज़ल बहुत सुन्दर है दिली बधाई लीजिये
ख़ुदा के नूर से बेखुद हुआ यूँ
‘ कहूँ कुछ और निकले कुछ ज़ुबाँ से------------------वाह वाह , क्या बात है . बहुत बढ़िया गजल . अनुज बधाई स्वीकार करे .
Aadarniya Giriraj Bhandari Ji,
परिंदों से परों ने की बग़ावत
सवाल अब पूछ्ना क्यूँ बागबाँ से ---- Bahut Khub.... dheron...dheron badhai bahut hi sundar rachna.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online