दीवारों में दरारें-4
मीना का घर रामनवमी के दिन
“मीना,भोग तैयार है |- - - जाS ,लडकियों को बुला ला|”
“जी मम्मी |”
“अरी मीना,यूँ सुबह-सुबह कहाँ चली ?” चौखट पर बैठे अख़बार पढ़ रहे दादा जी ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा
“भोग लगाने के लिए कन्याओं को बुलाने |”मीना ने धीमी आवाज़ में कहा
“अच्छा-अच्छा,जा जल्दी जा,पड़ोस में छोटी लड़कियाँ वैसे ही कम हैं अगर दूसरे लोग उनके घर पहले चले गए तो हमें ईंतज़ार करना पड़ेगा |”
“जी,दादा जी |”कहकर वो निकल गई |
थोड़ी देर बाद अपने साथ चहकती हुई कन्याएँ लिए हुए वो लौटी |सभी कन्याएँ अंदर मन्दिर वाले कक्ष में चली जाती हैं |बस एक लड़की को छोड़कर जिसे लिए मीना सबसे आखिरी में प्रवेश करती है |
“अरे,ये किसे ले आई ?”उसकी गोद में तीन साल की छोटी बच्ची को देख ड्राईंगरूम में बैठ चुके दादाजी मुँह बनाते हुए बोले |
“ये सामने वाले सुनील भईया की बेटी है |” कुछ हैरानी से पर धीमे स्वर में वो बोली
“जानती है,वे लोग कौन हैं ?”
“हम सब जानते हैं,पिछले पांच साल से वे यहाँ रह रहे हैं |”
“फिर भी - - - - - -तू इनके घर गई और इसे यूँ उठा लाई |”
“क्या फ़र्क पड़ता है दादाजी ,देखिए ये कितनी प्यारी है !”
“चार अक्षर पढ़ गई तो मुझे ज्ञान देने चली है,कल की छोकरी,ज़बान लड़ा रही है,जा इसे वापस छोड़कर आ !”दादाजी ने बिगड़ते हुए कहा
“पर दादाजी ,मैं तो सिर्फ पूछ रही हूँ |आखिर इसकी गलती क्या है ?”
“तू नहीं जानती !”
“पता नहीं - - -शाSSयद - - - आप ही बता दो |”
“ये वाल्मिकी हैं और हम गौतम - - - - ये छोटी बिरादरी की है !अब समझ में आ गया - - -अब जा |”दादाजी ने झल्लाते हुए कहा
“पर - - -यूँ खाली प्लेट भेजना |इसके घर वाले क्या सोचेंगे !”मीना की माँ जो रसोईं से बाहर आ गई थीं ने धीरे से कहा |
“ठीक है बहू,इसकी प्लेट में लाकर प्रसाद डाल जा |पर इसे कहीं बिठाना मत और अपनी छोरी से बोल कि इसे जब
छोड़कर लौटे तो हाथ मुँह पैर धोकर ही रसोई में जाए |”
“नहीं दादाजी,मैं ऐसा नहीं करूँगी !”अब मीना की आवाज़ भी कुछ ऊँची थी |उसने बच्ची को नीचे उतार दिया
“क्यों नहीं करेगी ? - - - - कैसे नहीं करेगी?- - - मैं भी देखता हूँ !”
चीखने चिल्लाने से बच्ची रोने लगी तो मीना उसे उसके घर छोड़ आई |तब तक माँ ने उसकी प्लेट में प्रसाद डाल दिया था |
मीना के लौटने तक बाकि कन्याएँ भी वापस जा चुकीं थी |
‘हाथ-पैर धोकर ही रसोई में जाईओ |”
“दादाजी मैं कह चुकी हूँ ,मुझ से ये सब नहीं होगा |”
“क्यों नहीं होगा ?हाथ-पैर धो लेने में क्या परेशानी है ! ”
“दादाजी ,आप जैसे लोगों की सोच कि वजह से - - - - “
“कहना क्या चाहती है ?” ऊँची आवाज़ में बोलते हैं |
“स्कूल में मुझे भी कुछ लोग छोटी जाति का मानते हैं |मेरे साथ उठना-बैठना,खाना-पीना पसंद नहीं करते |”मीना ने रुंधे गले से कहा |
“पर बेटी यही तो विधान है |ये सब तो भगवान का बनाया हुआ है |हमारे दादा-परदादा सदियों से यही - - - - -“
दादाजी ने नर्म पड़ते हुए कहा |
“यही तो मुश्किल है |कोई समझने को तैयार ही नहीं|” उसकी आँखों भर आईं थीं
“क्या कहना चाहती है ?”
“दादाजी ,मैं स्वयं अध्यापिका हूँ |मेरी क्लास में हर जाति-बिरादरी के बच्चे हैं |सब एक से - - - - कोई बच्चा नहीं जानता कि वो किस धर्म-जाति का है पर - - - - -|”
“पर क्या ?”
“सरकारी नियमों के अनुसार जब कुछ पिछड़े और अल्पसंख्यक बच्चों को अलग से वजीफ़ा मिलता है |तो बाकि बच्चे मायूस हो जाते हैं |वे एकदूसरे से घृणा करने लगते है |मुझसे सवाल करते हैं कि - - -|”
“सवाल क्यों ?वो अगड़े हैं और हम पिछड़े |हमे बराबरी में आना है |सदियों का अन्याय खत्म करने के लिए हमारा मजबूत होना जरूरी है |”
पर दादाजी,इससे तो सिर्फ पायदान बदलेगा ना ,हो सकता है तब हम अगड़े कहलाएँ और वे पिछड़े,और हमारी बिरादरी में भी तो बहुत से धनवान लोग हैं जो इस व्यवस्था का गलत लाभ उठाते हैं |और ऐसे लोग अपनी बिरादरी के गरीब लोगों से मेल-जोल नहीं रखते और बाद में ऐसे ही कुछ प्रभावशाली लोगों के नाम से नई उपजातियाँ बनती जाती हैं |
“साफ़-साफ़ बोल |”
“गाँधी-नेहरु-बिड़ला-अम्बानी क्या पहले ये उपजातियां सुनी थीं ?”
"नहीं |"
“ ऐसे ही दादाजी,कभी गुप्त,चोल,सैन,राणा,वंश के राजा हुए थे और आज उनसे ही - - -“ कहती हुई वो बाथरूम की तरफ बढ़ जाती है |
दादाजी खामोश होकर घर की दीवार को निहारने लगे |उनके समय में बनाई घर की मोटी दीवारों में अब दरारे दिखने लगी थीं |
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
क्या बात है सोमेश भाई!लाजव़ाब! कसावट लिए हुए उम्दा कथा! कडियों में ये सबसे अच्छी है! बहुत बहुत शुभकामनाये व् बधाईयां!!
निधि जी आपको कहानी अच्छी लगी ये पढ़ कर कुछ बल मिला ,फिर भी अगर कहानी में कुछ कमियाँ लगें तो अवश्य अवगत कराएँ
हरी प्रकाश भाई एवं मुकेश भाई जी आपका कोटिश धन्यवाद
आ.गोपाल सर आपका आदेश सिर माथे पर ,परंतु पूरा संस्मरण इसी शीर्षक से लिखा गया है और इसी शीर्षक में कुछ और रचनाओं को जोड़ने का मन है ,उद्देश्य केवल जातिगत भेदभावों कऔर उनकी शिथिल पड़ती मान्यताओं को उजागर करना नहीं हैं ,बहुत सी रूढ़िया हैं जो चटखने लगी हैं उन्हें भी इसी शीर्षक में शामिल करने की कोशिश रहेगी |आपका स्नेहपात्र
ek achhee kahaane ke liye badhaee -
इस बार कहानी वाकई में अच्छी बन पड़ी है आदरणीय सोमेश जी .. सुन्दरतम
प्रिय सोमेश
दीवारों में दरारे नहीं' दीवार में दरारें ' शीर्षक ठीक कर लें . स्नेह .
सोमेश भाई ,स्पष्ट सन्देश देती हुई सुन्दर कथा ! बधाई आपको ! सादर
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