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ग़ज़ल-नूर -अब ख़लाओं की मेज़बानी दे.

२१२२/१२१२/२२ (११२)
या ख़ुदा ऐसी ला-मकानी दे
अब ख़लाओं की मेज़बानी दे.
.
कितना आवारा हो गया हूँ मैं
ज़िन्दगी को कोई मआनी दे.
.
यूँ न भटका मुझे सराबों में
अपने होने की कुछ निशानी दे.      
.
सच मेरा कोई मानता ही नहीं
सच लगे ऐसी इक कहानी दे.
.
मेरी ग़ज़लों की क्यारी सूख गयी  
मेरी ग़ज़लों को थोडा पानी दे.
.
“नूर” को फ़िक्र दे नई मौला
पर नज़र उस को तू पुरानी दे.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 7, 2015 at 3:55pm

शुक्रिया आ. शिज्जू भाई 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 3, 2015 at 7:18pm

बहुत खूब निलेश भाई हर शे र लाजवाब है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 2:51pm

शुक्रिया आ. डॉ आशुतोष जी ...बहुत बहुत आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 2:50pm

शुक्रिया आ. राजेश कुमारी जी ...आपकी दाद और प्रतिक्रिया की सदैव प्रतीक्षा रहती है 
आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 2:49pm

शुक्रिया आ. दिनेश भाई 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 3, 2015 at 1:30pm

आदरणीय नूर जी ..यूँ न भटका मुझे सराबों में 
अपने होने की कुछ निशानी दे.   

“नूर” को फ़िक्र दे नई मौला 
पर नज़र उस को तू पुरानी दे. ..इस बेहतरीन ग़ज़ल के हर शेर पर दाद पर ये दो शेर मुझे बेहद पसंद आये 
...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 3, 2015 at 9:54am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है हमेशा की तरह दिल से दाद लीजिये 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 3, 2015 at 9:53am

यूँ न भटका मुझे सराबों में 
अपने होने की कुछ निशानी दे.    -----वाह्ह   
.मेरी ग़ज़लों की क्यारी सूख गयी  
मेरी ग़ज़लों को थोडा पानी दे.-----क्या कहने वैसे ये शेर आपके लिए तो नहीं है :)))
.

Comment by दिनेश कुमार on June 3, 2015 at 9:21am
सभी शे'र लाजवाब ... बहुत खूब आ.निलेश भाई जी
Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 9:06am

शुक्रिया आ. श्री सुनील जी 

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